समन्दर सभी को प्यासा रख देती है, खजूर और ताड़ के बड़े-बड़े वृक्ष राहगीरों को छांव नहीं दे पाते हैं। लेकिन "ये जिन्दगी" हमें सब कुछ दे सकती है, धूप, छांव, गम, खुशी न जाने और क्या-क्या? सुबह से ही मन थोड़ा बेचैन और दुखी था, तब और बहुत दुखी हो गया जब खबर सुनी कि नांदेड़ की तरफ जा रही एक पैसेंजर रेलगाड़ी और स्कूल बस के टक्कर से 19 बच्चों की जानें चली गई। उन छोटे-छोटे बच्चों की तस्वीरें जब मैंने फेसबुक पर देखी तो हृदय भाव विह्वल हो गया, आँखों से आंसू की धारा बह गई। उन बच्चों में मुझे मेरा बचपन दिख रहा था, जो उस समय तड़प और बिलख रहा था। मैं सोच से सागर में बार-बार डुबकी लगाने की कोशिश करता, लेकिन सागर मुझे हर बार प्यासा ही बाहर निकलने पर मजबूर कर देता। आखिरी किसकी गलती रही होगी? कई बार मैंने ऐसे लोगों को देखा है जो मानव रहित फाटक ही नहीं, फाटक लगे होने पर भी अपनी साईकिल लिए या, पैदल उस पार निकल जाने की जल्दी में होते हैं। उस समय उसकी नादानी पर खीज़ और गुस्सा तो आता ही था। मन ही मन बूदबूदा भी देता था, चढ़ जाए तब पता चलेगा। इस पल की खामोशी में जो दर्द है, उसने मेरे ...