महानगरों की जिन्दगी को अक्सर लोग कोसते जरुर हैं. मैने भी कभी कोसा था, लेकिन अब जबकि मैं एक आम नगर में रह रहा हूँ तो महानगर की महत्ता समझ में आती है। मैंने अपने महानगर प्रवास में पाया कि वहां का जीवन बहुत तेज होता है।
बस आपमें इच्छा और थोड़ी सी शक्ति हो तो आप कम समय में बड़ी जिन्दगी जी लेंगे। मैंने वो जिया भी है मात्र 9 महीने ही रहा, हजारों लोगों से मिला, इतनी बातें सीखी की बता भी नहीं सकता। जो भी मिलते थे सभी ज्ञान की पोटली लिए आम इंसान की तरह दिखते थे।
बीता हुआ कल सपने में ही सही दूर से आवाज़ जरुर देती है. कुछ ऐसे अंतहीन निशान बन जाते हैं जिन्हें आप मिटा नहीं सकते हैं।
याद है वह दिन जब मैं पटना से दिल्ली के लिए चला था, Bhaskar भैया से इसी फेसबुक के जरिये बात हुई थी। उन्होंने बड़ी आत्मीयता से कहा था अपना ही घर समझो और आ जाओ. मैं चला आया दिल्ली, उस दिन से वो घर अपना ही हो गया.
बीते पन्नो की एक लिखावट में मेरा नाम छपरा से जुड़ गया था, जब आईआईएमसी के लिए मेरे चयन की सूचना मिली तब मैं छपरा govt ttc से बी एड की पढ़ाई करने भी लगा था. बी एड छोड़ कर आईआईएमसी को चुनना कठिन फैसला था. मैंने टी इ टी की परीक्षा में भी उत्तीर्णता पाई थी, यानि बी एड हो जाता तो शिक्षक बनना तय. फिर भी मैंने आईआईएमसी को चुना, और आज दावे के साथ कह सकता हूँ कि मेरा फैसला सही था।
मेरा भविष्य क्या होगा? यह मैं नहीं जानता लेकिन दिल्ली जैसा महानगर और आईआईएमसी जैसे संस्थान ने मेरे अधखुले चक्षु जरुर खोल दिए। अगर आईआई प्रेफिक्स लगे नाम का संस्थान न होता तो बाबूजी की हिम्मत भी जबाव दे देती. लेकिन कैसे भी करके उन्होंने मेरे पढ़ाई के लिए पैसों में कमी नहीं आने दी। आज महानगर की तरफ भागते लोगों को देखकर मुझे उतनी हैरानी नहीं हो रही है जितनी कल होती थी।
हाँ वहां दुःख भी अनेकानेक थे, कभी-कभी तो खुली सांस लेने के लिए जेएनयू का कोई कोना पकड़ना पड़ता था।
आज या कल कभी भी, एक गाँव जैसा शहर कहाँ होगा,
मुंबई भी महानगर है, मगर दिल्ली जैसा ज़िगर कहाँ होगा।
#missing डेल्ही।
बस आपमें इच्छा और थोड़ी सी शक्ति हो तो आप कम समय में बड़ी जिन्दगी जी लेंगे। मैंने वो जिया भी है मात्र 9 महीने ही रहा, हजारों लोगों से मिला, इतनी बातें सीखी की बता भी नहीं सकता। जो भी मिलते थे सभी ज्ञान की पोटली लिए आम इंसान की तरह दिखते थे।
बीता हुआ कल सपने में ही सही दूर से आवाज़ जरुर देती है. कुछ ऐसे अंतहीन निशान बन जाते हैं जिन्हें आप मिटा नहीं सकते हैं।
याद है वह दिन जब मैं पटना से दिल्ली के लिए चला था, Bhaskar भैया से इसी फेसबुक के जरिये बात हुई थी। उन्होंने बड़ी आत्मीयता से कहा था अपना ही घर समझो और आ जाओ. मैं चला आया दिल्ली, उस दिन से वो घर अपना ही हो गया.
बीते पन्नो की एक लिखावट में मेरा नाम छपरा से जुड़ गया था, जब आईआईएमसी के लिए मेरे चयन की सूचना मिली तब मैं छपरा govt ttc से बी एड की पढ़ाई करने भी लगा था. बी एड छोड़ कर आईआईएमसी को चुनना कठिन फैसला था. मैंने टी इ टी की परीक्षा में भी उत्तीर्णता पाई थी, यानि बी एड हो जाता तो शिक्षक बनना तय. फिर भी मैंने आईआईएमसी को चुना, और आज दावे के साथ कह सकता हूँ कि मेरा फैसला सही था।
मेरा भविष्य क्या होगा? यह मैं नहीं जानता लेकिन दिल्ली जैसा महानगर और आईआईएमसी जैसे संस्थान ने मेरे अधखुले चक्षु जरुर खोल दिए। अगर आईआई प्रेफिक्स लगे नाम का संस्थान न होता तो बाबूजी की हिम्मत भी जबाव दे देती. लेकिन कैसे भी करके उन्होंने मेरे पढ़ाई के लिए पैसों में कमी नहीं आने दी। आज महानगर की तरफ भागते लोगों को देखकर मुझे उतनी हैरानी नहीं हो रही है जितनी कल होती थी।
हाँ वहां दुःख भी अनेकानेक थे, कभी-कभी तो खुली सांस लेने के लिए जेएनयू का कोई कोना पकड़ना पड़ता था।
आज या कल कभी भी, एक गाँव जैसा शहर कहाँ होगा,
मुंबई भी महानगर है, मगर दिल्ली जैसा ज़िगर कहाँ होगा।
#missing डेल्ही।
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