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सितंबर, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

विज्ञापन की महिमा और प्रचारतंत्र

भारत में जन्म लेना मेरे लिए एक गौरव का विषय है। आप सोचेंगे कि ये लड़का तो बेकार में ही जज्बाती हो रहा है। इस देश में तो बस कमियाँ ही कमियाँ हैं, जिधर देखो उधर भूख है गरीबी है समाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक हर स्तर पर असमानता है। इसके बाबजूद भी मैं सच में कह रहा हूँ कि मुझे भारतीय होने का गौरव है। किसी भी दर्शन के हिसाब से देखा जाए तो भारत के यही सारे कारण हमारे अंदर मानवीय गुणों को बचाए रखने के लिए हमें प्रेरित करता है। यह देश अपने लोगों को कदम-कदम पर मौके भी बहुत देता है। हालांकि ऐसा नहीं कि विश्व के अन्य देश बेकार हैं और वहाँ के लोगों को अपने देश पर गर्व नहीं होता है। सभी को अपने-अपने देश पर गर्व होता होगा, लेकिन मैं हूँ कि अपने देश पर गौरव होने का प्रचार कर रहा हूँ। मेरा कहने का मतलब यह है कि जिसको भी अपने कुछ भी होने का गौरव है, तो रहे, परंतु उसे सबको बताने की क्या जरूरत है ? जरूरत है, क्योंकि आज एक मठाधीश को इस बात की चिंता सताने लगती है कि कल तक उसको मिलने वाला दान या चंदा अब किसी साई बाबा के मंदिर में पहुँच जा रहा है। इसके पीछे के कारणों को जानने की जब कोशिश होती है तो पता ...

#इंकलाब

बूढ़ा बरगद पूछ रहा है नए पौधे तो बेजान पड़े हैं कौन करेगा मेरा इंसाफ? कैसे आएगा अब इंकलाब? नन्हीं कलियाँ मुरझाने लगी हैं बागों से रौनक कतराने लगी है, महंगी हो गई है पुरानी किताब कैसे आएगा अब इंकलाब? आज़ादी अब नई नहीं है गुलामी भी अबतक गई नहीं है, कौन भरेगा सूखा तालाब? कैसे आएगा अब इंकलाब? नैनों में अब वो प्यार नहीं है दिल में सपनों का संसार नहीं है बस पैसों में ही छुपा है नबाव कैसे आएगा अब इंकलाब? अंधों के बीच में होड़ लगी है मूर्खों के बीच में बहस छिड़ी है, कोने-कोने पर बिक रही है शराब कैसे आएगा अब इंकलाब? दुआ करने वाले दुआ कर रहे हैं चलने वाले अकेले चल रहे हैं प्रकृति लेगी सबसे हिसाब, एक दिन आएगा इंकलाब।। -विवेक।