बूढ़ा बरगद पूछ रहा है
नए पौधे तो बेजान पड़े हैं
कौन करेगा मेरा इंसाफ?
कैसे आएगा अब इंकलाब?
नन्हीं कलियाँ मुरझाने लगी हैं
बागों से रौनक कतराने लगी है,
महंगी हो गई है पुरानी किताब
कैसे आएगा अब इंकलाब?
आज़ादी अब नई नहीं है
गुलामी भी अबतक गई नहीं है,
कौन भरेगा सूखा तालाब?
कैसे आएगा अब इंकलाब?
नैनों में अब वो प्यार नहीं है
दिल में सपनों का संसार नहीं है
बस पैसों में ही छुपा है नबाव
कैसे आएगा अब इंकलाब?
अंधों के बीच में होड़ लगी है
मूर्खों के बीच में बहस छिड़ी है,
कोने-कोने पर बिक रही है शराब
कैसे आएगा अब इंकलाब?
दुआ करने वाले दुआ कर रहे हैं
चलने वाले अकेले चल रहे हैं
प्रकृति लेगी सबसे हिसाब,
एक दिन आएगा इंकलाब।।
-विवेक।
#विवेकानंद सिंह
जवाब देंहटाएं