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खेल-खेल में टेक्नो फ्रेंडली बनाते खिलौने

खिलौने सिर्फ खेल या मनोरंजन के लिए नहीं होते. खिलौने तुम्हें बहुत कुछ सिखाते भी हैं. पिछले कुछ वर्षों में खिलौने के स्वरूप में काफी परिवर्तन आया है. आज तरह-तरह के हाइटेक खिलौनों की मदद से बच्चे टेक्नो फ्रेंडली भी बन रहे हैं. खिलौने बच्चों के अंदर प्रोग्रामिंग, डिजाइनिंग, म्यूजिक, इंजीनियरिंग जैसी प्रतिभाओ को उभारने का भी काम कर रही हैं. खास बात यह है कि आज के दौर में वैज्ञानिक और इंजीनियर्स भी किसी प्रोडक्ट को साकार रूप देने से पहले खिलौने के जरिये ही अपना परीक्षण पूरा करते हैं. इनके बारे में तुम्हें भी जानना चाहिए. विवेकानंद सिंह की प्रस्तुति. आज के दौर में टॉय इंडस्ट्री एक बड़ा बाजार बन कर उभरी है. किसी मॉल में जाओ या दुकान में वहां तुम्हें तरह-तरह के खिलौने मिलेंगे. आजकल परंपरागत खिलौनों के साथ तकनीक को जोड़ने का नया रुझान देखने को मिल रहा है. इसकी वजह से खिलौने भी काफी हाइटेक रूप में हमारे सामने आ रहे हैं. इन्हें तुम्हारी कल्पनाओं को सच करने के लिए मॉडल के रूप में भी प्रयोग किया जा रहा है. तुम्हें जान कर आश्चर्य होगा कि इन छोटे-छोटे खिलौनो को बनानेवालों में बड़े-बड़े इंजीनियर...

सत्ता का गुणसूत्र

विवेकानंद सिंह क्रोमोजोम यानी गुणसूत्र से तो आपलोग वाकिफ ही होंगे। इसमें जरा-सा एब्रेशन (दोष) आ जाये, तो अपंगता, मेंटल रेटार्डनेस, नपुंसकता जैसी समस्याएं आम बात हो जाती हैं। सत्ता के मामले में भी ऐसी समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है। बहुमत से एक सीट भी इधर-उधर हों, तो पूरा का पूरा खेल बिगड़ जाता है। अब उत्तर प्रदेश में होनेवाले विधानसभा चुनाव को ही लीजिए। वहां की 403 विधानसभा और एक एंग्लो-इन्डियन सदस्य सहित 404 विधानसभा सदस्यों वाली विधानसभा में विजयी आंकड़े यानी 203 सीटें हासिल करने का हर पार्टी का अपना समीकरण है। अभी तक जो चुनावी रुझान बन रहे हैं उस हिसाब से सत्ता की रेस में तीन प्रमुख पार्टियां शामिल हैं। बाकी दलों में कांग्रेस राहुल गांधी को नेतागिरी की ट्रेनिंग देने के लिए और बचे-खुचे बस अपनी दाल-रोटी की जुगाड़ के लिए मैदान में डटे हैं। हालांकि, मामला इतना भी आसान नहीं है, जितना कि सर्वे वाले बता रहे हैं। फिर भी राज्य में धीरे-धीरे हालात कुछ ऐसे बनाये जाने की कोशिश हो रही है कि बहुसंख्यक हिन्दू अस्मिता जग जाए और वे जय श्री राम का नारा लगानेवालों के साथ हो लें। क्योंकि,...

भूखे गरीब की ये ही दुआ है

विवेकानंद सिंह वर्ष 1969 में एक चर्चित हिंदी फिल्म आयी थी, जिसका नाम था ‘एक फूल दो माली’. इस फिल्म का एक गाना- भूखे, गरीब ये ही दुआ है, औलाद वालो फूलो फलो. पैसे दो पैसे से तुम्हारा कुछ न घटेगा, ओ दौलत वालो. काफी पॉपुलर हुआ। मैंने पहली बार इस गाने को अपने गांव से सटे बाजार जगदीशपुर में एक वृद्ध भिखारी को गाते सुना था। बाद में फिल्म भी देखी। आज इस गाने की चर्चा इसलिए कर रहा हूं, क्योंकि आज भी हमारे देश में भूखे और गरीब बस दुआ ही कर पाने के योग्य हैं। उनके हिस्से का सच आज भी ज्यों-का-त्यों है। हम भले ही अपने देश के अरबपतियों की सूची देख कर गौरव से भर जाते हैं। लेकिन, जब कोई वैश्विक रिपोर्ट यह बताती है कि कुपोषण से जूझ रहे दुनिया के 118 देशों में हमारे देश का स्थान 97वां है, तो हमारे तरक्की की सारी पोल खुल जाती है। कुछ लोग, तो फिर भी खुश होंगे कि हम पाकिस्तान से आगे हैं। उन्हें खुलेआम चुनौती, तो दे ही सकते हैं कि भूख से लड़ कर दिखाओ, कुपोषण से लड़ कर दिखाओ, आदि-आदि। दरअसल, पिछले 11 अक्तूबर को अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (IFPRI) द्वारा वैश्विक भुखमरी सूचकांक यानी ग...