चंद अच्छे नस्ल के घोड़े, भारत रूपी रथ तथा उस पर सवार जनता को खींचे जा रही हैं, और हम आगे बढ़ते जा रहे हैं। हमें लग रहा है कि हम विकसीत हो रहे हैं। लेकिन जब हम अपने हालात पर गौर फरमारते हैं तो सच पुछिये हालत बुरी दिखती है। हम अपने पुराने दिनों की तुलना में कम सुखी हैं। यह दिखता भी है हम सभी को, पर बोलने की जहमत कोई नहीं करता, शायद सबको डर लगता है कि कहीं कोई उसे पुरातनपंथी ना कह दे।
आज जहाँ देखिये वहीं प्रचार तंत्र का
बोलवाला नजर आता है थोड़ी सी चूक और एहसास हुआ कि लूटे गये बाजार में, पैसे का नग्न खेल ऐसा कि यहाँ गंजे को सचमुच में
कंघी बेच दिया जा रहा है। कल की ही बात है मैं बेर सराय में एक मिठाई की दुकान पर
नाश्ता कर रहा था, वहीं एक बच्चा भी अपनी माता-पिता के साथ कुछ खा रहे थे। बच्चे
ने अपनी माँ से कहा..मामा मुझे बिंगो चाहिए, माँ ने मना किया, बच्चा रोने लगा, तो पापा
से रहा न गया, जनाब गये और बिंगो के दो पैकेट ले आये। माँ इतने में पत्नी बन गई और
पति को आँख दिखाते हुए कहा कि घर में मैंने चिप्स बना कर रखा है वो नहीं खाएगा,
टीवी पर जो देखेगा वहीं चाहिए, सुन लिजिए मुझे भी नई तनिष्क वाली ज्वेलरी दिला
देना नहीं तो..। मुझे उनकी बातें सुन कर हँसी आई, यार लोग वाकई कितने खुशहाल हैं। ऐसे
में रथ के सारथी और लोकतंत्र के विजय पुरूष भी अपने-आप को विकास पुरूष कहने से
चूकते नहीं हैं, पर सोच कर
देखिए विकास कैसा?... विकास तो चंद औद्योगिक घराने का हो पाता है।
और सरकार
आप हैं कि उन घरानों के साक्षी बनकर अपनी वाहवाही लूटते फिरते हैं, पर भूल जाते हैं कि देश की भूख मिटाने वाला
"किसान" भूखा है, उस किसान का
तन उघड़ा है, उस किसान की
छत से सूरज किरणों से लेकर वारिष की बुंदे सब बिना कुछ बोले टपक पड़ती है।
कुरकुरे और पिज्जा वालों की तो बहुत बात होती है पर जिस मक्के से वो बनता है उस मक्के को उपजाने वाले किसान की मेहनत किसी को नहीं दिखती है। वाह रे सारथी, देश रूपी रथ को तो तुमने विकास के ऐवरेस्ट पर पहुँचा दिया है। लेकिन तुम्हारा किसान आज भी वारिष की बुंदों के इंतजार में हत्या कर लेता है। नहाने की बात तो छोड़िए महराज पीने तक का पानी नहीं मिल पाता है। जीडीपी का घटना-बढ़ना इन्द्र देवता के हाथ। ऐसे में इन मंहगी-मंहगी काली गाड़ीयों का क्या चक्कर है, मंहगे होते फ्लेट और देश भर में बढ़ती जमीनों की कीमत का क्या राज है? जो हो भाई सपने देखने की आजादी तो दे दो या वो भी अपने और अपने उन मित्रों के लिए छोड़ रखा है जिनके थर्मामीटर से विकास गाथा उवाच हो रहा है। क्या कभी कोइ किसान भी अपनी पत्नी को तनिष्क की ज्वेलरी देने का सपना देख पाएगा..?
कुरकुरे और पिज्जा वालों की तो बहुत बात होती है पर जिस मक्के से वो बनता है उस मक्के को उपजाने वाले किसान की मेहनत किसी को नहीं दिखती है। वाह रे सारथी, देश रूपी रथ को तो तुमने विकास के ऐवरेस्ट पर पहुँचा दिया है। लेकिन तुम्हारा किसान आज भी वारिष की बुंदों के इंतजार में हत्या कर लेता है। नहाने की बात तो छोड़िए महराज पीने तक का पानी नहीं मिल पाता है। जीडीपी का घटना-बढ़ना इन्द्र देवता के हाथ। ऐसे में इन मंहगी-मंहगी काली गाड़ीयों का क्या चक्कर है, मंहगे होते फ्लेट और देश भर में बढ़ती जमीनों की कीमत का क्या राज है? जो हो भाई सपने देखने की आजादी तो दे दो या वो भी अपने और अपने उन मित्रों के लिए छोड़ रखा है जिनके थर्मामीटर से विकास गाथा उवाच हो रहा है। क्या कभी कोइ किसान भी अपनी पत्नी को तनिष्क की ज्वेलरी देने का सपना देख पाएगा..?
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