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बदलाव की परिकल्पना

कुछ दिनों बाद देश को नये-नये वजीर मिलेंगे और जनता फिर उनकी ओर आशा भरी निगाहों से देखेगी। आज बदलाव की इच्छा पूरे देश की आवाज़ बनती जा रही है, लेकिन सिर्फ सत्ता बदलाव से मौजूदा हालात में बदलाव आ जाएगा यह कहाँ स्पष्ट है? यह देश स्वयं में समस्या का एक पिटारा है, जिस ओर नजर दौड़ाओ मुद्दे और चिंताएँ ही दिखती हैं।

जनसंख्या के हिसाब से संसाधन का आभाव इस देश में बेरोजगारी को बढ़ा रहा है, हर साल युवाओं की फौज तैयार हो रही है जिसे नौकरी चाहिए, तरक्की के लिए समुचित अवसर चाहिए। हमारे देश में रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए कृषि क्षेत्र और किसानों को आर्थिक मदद, उचित वैज्ञानिक प्रशिक्षण एवं सुविधाओं की आवश्यक्ता है, लेकिन जिस प्रकार से देश की कृषि को हासिए पर धकेला जा रहा है, यह देश के लिए एक समस्या बनती जा रही है। खेती को आज के समय में सबसे नीच पेशा के रूप में देखा जाता है।

एक किसान कैसी जिन्दगी जीने के लिए मजबूर है? इसकी खबरें भी इक्का-दुक्का समाचार पत्रों तक ही सीमित है। देश की ऐसी आवादी जो देश का पेट भरती है, उसकी जिन्दगी पर कोई चर्चा तक नहीं करना चाहता है। आखिर क्यों देश की मीडिया भी उसके प्रति उदासिन रवैया अपनाती है? कारण शायद खेतिहर लोगों का मीडिया उपभोक्ता नहीं होना हो सकता है। मीडिया में एक आंकड़े के मुताबिक लगभग तीन प्रतिशत ही ग्रामीण क्षेत्रों की खबरें होती हैं। मानों सारी समस्या सिर्फ महानगरों में ही हो, छोटे शहरों, गाँवों  में जैसे समस्या हो ही नहीं। एक वरिष्ठ पत्रकार से जब मैंने इस संदर्भ में पूछा तो उन्होंने कहा "मीडिया पहले कमजोर आदमी का आवाज था, आज मीडिया मजबूत आदमी का बयान है" 

एक चर्चित कहावत है कि जब भी राजनीतिक व्यवस्था में परिवर्तन हुआ है उसके पीछे आर्थिक वजह जिम्मेदार रही है। आज देश में भ्रष्ट्राचार सबसे अधिक सुना और बोला जाने वाला शब्द हो गया है। ऐसा नहीं है कि भ्रष्ट्राचार कोई नई खोज है ये तो तबसे हमारे बीच है, जब यह पहली बार शब्दकोश में आया होगा, हाँ इसकी मात्रा और प्रवृति में बढ़ोत्तरी अवश्य हुई है। जिस तरह से देश के नेताओं के राजनीतिक चरित्र और व्यावहारिक व्यक्तित्व में अंतर है उससे तो साफ लगता है कि सत्ता मूल रूप सेे पूंजीपतियों की रखैल है।

इन सारी समस्या के बाद भी विश्वपटल पर हमारे देश का जो इतना सम्मान है, उसका कारण हमारे देश का दुनिया में सबसे बड़ा लोकतंत्र होना है। आजादी के बाद से हमने और हमारे पुरखों ने इसकी लाज रखी है, लेकिन गरीबी से निजात, शिक्षा, बेरोजगारी सेनिजात और आधी आवादी यानि महिला का सशक्तिकरण जब तक नहीं हो जाता है तब तक बदलाव की परिकल्पना पूरी नहीं हो सकती है।

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