पिछले एक महीने से उत्तर प्रदेश(यूपी) के कानपुर
में हूँ और जागरण प्रकाशन के आई नेक्स्ट में ट्रेनी सब एडिटर के पद पर काम कर रहा
हूँ। जब से यूपी आया हूँ लगभग रोज महिला के खिलाफ अपराध के मामले सामने आ रहे हैं,
पिछले 10 दिनों में कुल 6 रेप के वारदात प्रकाश में आए हैं। यह आंकड़ा किसी भी
प्रदेश के प्रशासन और पुलिस के लिए न सिर्फ शर्म की बात है बल्कि ये लॉ एण्ड ऑर्डर
के पूरी तरह विफल होने की ओर इशारा भी करता है। यहाँ शर्म की बात उस प्रदेश के
लोगों के लिए भी है जिसके समाज में ऐसे जघन्य अपराध हो रहे हैं।
महिला के खिलाफ होने वाले अपराध की चरमसीमा
दिल्ली के 16 दिसंबर वाली घटना में पूरा देश देख चुका है, उस घटना के बाद मुझे लगा
था कि शायद अब देश बदलेगा, लोगों की सोच बदलेगी, लेकिन उस समय से अब तक हजारों रेप
की घटनाएं हो चुकी होंगी। सबकुछ जस का तस है और तो और एक तरीके से रेप का ट्रेंड
जैसा चल पड़ा है। बदायूं में दो चचेरी बहनों को रेप के बाद पेड़ से लटकाना, फिर
बहराइच और मुरादाबाद में उसी अंदाज में घटना को अंजाम देना यह दर्शाता है कि
अपराधी के हौसले कितने बुलंद और खौफनाक हैं। आम नागरिक को तो पुलिस और प्रशासन से
ही उम्मीदें होती हैं, लेकिन प्रदेश के डीजीपी ही अगर यह बयान दें कि “रेप तो एक रूटीन घटना है, सालों भर होती
रहती है” तो आम लोगों के लिए
इससे बड़ी त्रासदी और क्या हो सकती है।
यूपी के सीएम अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव के समय
से ही मीडिया को लेकर मन में एक धारणा बना ली है कि मीडिया उसके खिलाफ है। अखिलेश
को लगता है कि मीडिया बेकार में ही यूपी को फोकस करती है वो कहते हैं कि ऐसी
घटनाएं तो पूरे देश में हो रही हैं तो सिर्फ यूपी ही क्यों? मानों उन्हें इन घटनाओं से ज्यादा चिंता
अपने स्टेटस की हो, जो बिगड़ती जा रही है। आस्ट्रेलिया से पढ़ाई करके लौटे
इंजीनियर ने प्रदेश के लोगों को हर मुकाम पर निराशा के सिवाय कुछ भी नहीं दिया है।
यूपी सही मायनों में गुंडा राज की सही दास्तां बयां कर रहा है।
बेटे से चार कदम आगे मुलायम सिंह यादव ने कुछ दिन
पहले एक बयान दिया था कि “लड़के हैं लड़कों से गलतियाँ हो जाती है तो क्या इसके लिए उन्हें
फांसी पर चढ़ा दिया जाए” मैं
समझता हूँ इस बयान के बाद से यूपी में महिलाओं के खिलाफ अपराध में तेजी से
बढ़ोत्तरी हुई। ऐसे बयानों से अपराधियों का हौसला और बढ़ता है। ऐसे बयान भी एक
प्रकार से महिलाओं का सामाजिक रेप करते हैं।
पुलिस थाने में पीड़िता के पिता से जाति पूछा
जाना भी इस समाज की घोर विडंबना का ही हिस्सा है। देश के संविधान को बने और लागू
हुए 6 दशक से ज्यादा हो चुके हैं, महिलाओं को उसका अधिकार अब तक मिला ही नहीं है,
जो महिला आज समाज के लिए एक आदर्श उदाहरण हैं उन्होंने अपने समाज और परिवेश से
कड़ा संघर्ष करके वह मुकाम हासिल किया है, लेकिन यूपी की महिलाओं की स्थिति तो
काफी बदतर मालूम पड़ती है। यूपी को देख कर लगता है कि इंडिया का सबसे विविध और
ऐतिहासिक महत्व रखने वाला राज्य आज अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है।
मेरा मानना है कि अपराधी के अपराध करने में
प्रशासन, समाज और पुलिस तीनों जिम्मेवार होता है क्योंकि अपराधी हमारे समाज का ही
व्यक्ति है, जिसे हमारा समाज पनाह देने को मजबूर है क्योंकि वह अपनी राजनीतिक
पहुँच के नाम पर प्रशासन और पुलिस को मुट्ठी में रखने का दंभ भरता है, यूपी में यह
एक हकीकत है, जिसे मैंने अपने इस छोटे प्रवास में बखूबी फील किया है।
विवेकानंद सिंह मोः08860533197
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