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नवंबर, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जब मैं भी बन गया था ‪बाबा‬ !

बाबा रामपाल के चक्कर में कुछ देर के लिए ही सही, गली-मोहल्ले और तमाम शहरों में जमे पड़े स्वयंभू बाबाओं के पाखण्ड से पर्दा हटाने की कोशिश हो रही है। मैंने सोचा चलो इसी बहाने मैं भी अपने कुछ राज शेयर करूँ। मेरे पुराने दोस्त जो मुझे इंटरमीडिएट के समय से जानते हैं वो मुझे "बाबा" कहकर भी बुलाते हैं। इसके पीछे की वजह ये है कि तीन दिन तक एक आश्रम में मैं भी बाबा की तरह ही रहा था। इसके पीछे की घटना थोड़ी लम्बी है, जो लोग बिहार के होंगे वो "संतमत" को जानते होंगे। मेरे माता-पिता इस मत से दीक्षित हैं। इस मत के प्रचारक "महर्षि मेंही दास" रहे थे। भागलपुर के रहने वाले इस मत से और अच्छी तरह वाकिफ होंगे। कुप्पघाट में इनका आश्रम है, आये दिन यह आश्रम भी भिन्न-भिन्न कारणों से विवादों में रहा है। वैसे यह सच है कि सत्संग में अच्छी-अच्छी बातें ही बताई जाती हैं, लेकिन आप जिनकी बातें मानकर, "राह पकड़कर एक चलाचल पा जाएगा मोक्ष-शाला" के लिए निकल पड़ते हैं उस गुरु को जांचना-परखना भी जरुरी होता है। अब मुद्दे पर आता हूँ हुआ यूँ कि भागलपुर से सटे सबौर में "स्वाम...

सांसद जी हमारा गांव भी ग्लोबल होना चाहता है

आज गाँव-गाँव सुनकर अपने गाँव की बहुत याद आई। मन कर रहा था कि बिहार के सारे सांसदों को मेल करूँ कि अरे कोई सांसद मेरे गाँव "हरचंडी" को भी गोद ले लीजिये भाई। परन्तु रुक गया, चूँकि बिहार में मेरे अपने गृह क्षेत्रों का भाग्य देखिये जब तक कांग्रेस की सरकार रही भागलपुर में बीजेपी के शाहनवाज़ हुसैन और बांका से गिरधारी यादव और क्रमश: निर्दलीय के तौर पर दिग्विजय बाबू (दादा) और उनकी पत्नी पुतुल कुमा री सांसद रहीं। गिरधारी जी अपनी बांसुरी बजाने में पांच साल रहे। दादा जब तक थे जैसे भी हो बांका थोड़ा ही सही पर विकास कर रहा था। जब से दादा का निधन हुआ और पुतुल कुमारी सांसद बनी तब से धीरे-धीरे उनके साथ रहने वाले चमचों ने दादा के नाम को भी धूमिल किया। नतीजा सामने रहा बांका से मोदी लहर में भी राजद के जयप्रकाश यादव की जीत हुई। कुछ वर्षों से भागलपुर की भाजपा में उठापटक जारी थी, शाहनवाज़ हुसैन को लेकर उनके ही बीच ये धारणा थी कि जब तक ये भागलपुर में रहेंगे यहाँ का नेता उभर नहीं पायेगा। प्रयोगशाला तैयार हुई और प्रयोग सफल रहा और भागलपुर से शाहनवाज हुसैन हार भी गए। अब बताईये हमारे...

दोस्त का फोन और दिल की बातें

इश्क, प्यार, प्रेम, मोहब्बत, लव और भी जितने इसके पर्यायवाची शब्द हैं, इन्हें सुनने के साथ खुद के जवां होने का एक एहसास यकायक दिल को छू जाता है। हुआ यूँ कि आज शाम को स्कूल के समय के एक दोस्त से बात हुई फोन पर, उसे नहीं मालूम था कि मैं फिलहाल एक मीडिया हाउस में काम कर रहा हूँ। उसने पहला सवाल किया, और बे पढ़ाई कैसी चल रही है? लगे हाथ दूसरा सवाल वो तेरा नेट का क्या हुआ? और फिर तीसरा, वो जिससे तुम्हें प्रेम हुआ था वो भाव देती है कि पहले की तरह घंटा ही बजा रहे हो? मैं खामोश, जैसे शॉटगन साहब ने मुझे भी जोर से खामोश कह दिया हो। फिर बड़ी सहजता और थोड़ी शालीनता के साथ रिप्लाई दिया, अबे यार कानपुर में हूँ, जागरण(आई नेक्स्ट) में काम कर रहा हूँ। (भागलपुर में रहने वालों को आई नेक्स्ट नहीं मालूम वो जागरण ही समझते हैं). उसके बाद उसकी ओर से मानों हमला सा हुआ, कानपुर में तुम किसका जागरण करने लगे बे। सत्यानाश हो तेरा, हम सोचे कि तुम दिल्ली गए हो तो आईएएस और नेट की तैयारी में लगे होगे। (उसका फेसबुक पर अकाउंट नहीं है) फिर वो बोला, हम सोच रहे थे कि दिल्ली आयेंगे तुम्हारे पास। तुम तो धो...