बाबा रामपाल के चक्कर में कुछ देर के लिए ही सही, गली-मोहल्ले और तमाम शहरों में जमे पड़े स्वयंभू बाबाओं के पाखण्ड से पर्दा हटाने की कोशिश हो रही है। मैंने सोचा चलो इसी बहाने मैं भी अपने कुछ राज शेयर करूँ। मेरे पुराने दोस्त जो मुझे इंटरमीडिएट के समय से जानते हैं वो मुझे "बाबा" कहकर भी बुलाते हैं। इसके पीछे की वजह ये है कि तीन दिन तक एक आश्रम में मैं भी बाबा की तरह ही रहा था। इसके पीछे की घटना थोड़ी लम्बी है, जो लोग बिहार के होंगे वो "संतमत" को जानते होंगे। मेरे माता-पिता इस मत से दीक्षित हैं। इस मत के प्रचारक "महर्षि मेंही दास" रहे थे। भागलपुर के रहने वाले इस मत से और अच्छी तरह वाकिफ होंगे। कुप्पघाट में इनका आश्रम है, आये दिन यह आश्रम भी भिन्न-भिन्न कारणों से विवादों में रहा है। वैसे यह सच है कि सत्संग में अच्छी-अच्छी बातें ही बताई जाती हैं, लेकिन आप जिनकी बातें मानकर, "राह पकड़कर एक चलाचल पा जाएगा मोक्ष-शाला" के लिए निकल पड़ते हैं उस गुरु को जांचना-परखना भी जरुरी होता है। अब मुद्दे पर आता हूँ हुआ यूँ कि भागलपुर से सटे सबौर में "स्वाम...