सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

सांसद जी हमारा गांव भी ग्लोबल होना चाहता है

आज गाँव-गाँव सुनकर अपने गाँव की बहुत याद आई। मन कर रहा था कि बिहार के सारे सांसदों को मेल करूँ कि अरे कोई सांसद मेरे गाँव "हरचंडी" को भी गोद ले लीजिये भाई। परन्तु रुक गया, चूँकि बिहार में मेरे अपने गृह क्षेत्रों का भाग्य देखिये जब तक कांग्रेस की सरकार रही भागलपुर में बीजेपी के शाहनवाज़ हुसैन और बांका से गिरधारी यादव और क्रमश: निर्दलीय के तौर पर दिग्विजय बाबू (दादा) और उनकी पत्नी पुतुल कुमारी सांसद रहीं।

गिरधारी जी अपनी बांसुरी बजाने में पांच साल रहे। दादा जब तक थे जैसे भी हो बांका थोड़ा ही सही पर विकास कर रहा था। जब से दादा का निधन हुआ और पुतुल कुमारी सांसद बनी तब से धीरे-धीरे उनके साथ रहने वाले चमचों ने दादा के नाम को भी धूमिल किया। नतीजा सामने रहा बांका से मोदी लहर में भी राजद के जयप्रकाश यादव की जीत हुई।
कुछ वर्षों से भागलपुर की भाजपा में उठापटक जारी थी, शाहनवाज़ हुसैन को लेकर उनके ही बीच ये धारणा थी कि जब तक ये भागलपुर में रहेंगे यहाँ का नेता उभर नहीं पायेगा।
प्रयोगशाला तैयार हुई और प्रयोग सफल रहा और भागलपुर से शाहनवाज हुसैन हार भी गए। अब बताईये हमारे यहाँ के दोनों सांसद बीजेपी के विरोधी पार्टी से हैं। अब सत्ता वालों से जो छाड़न (छोड़ा हुआ) वही न हमारे क्षेत्र के हिस्से आएगा।

ऐसे इ पीएम में एक बात मस्त है, टॉपिक सब चुन-चुन के मुद्दा उठा रहे हैं। खैर इनके बहाने से जयापुर तो अब ग्लोबल गाँव बन गया।

हम जब 11-12 साल के रहे होंगे, उस समय अपने चचेरे दादा जी (दादा के भाई) से एक बार मैंने पूछा था कि ये नेता लोग जो अपना परचा बांटतें हैं, उसमें अपने फोटो के साथ-साथ तीर-धनुष, तो हँसुआ-बाली, हाथ, मशाल, कमल आदि-आदि का फोटो क्यों लगाते हैं?
उन्होंने कहा था, बेटा ये उनकी पार्टी का चुनाव चिन्ह है, इसे एक प्रतिक रूप में बनाया गया है। ये लोगों की स्मृति में बैठ जाता है। वो बोले ये वो जरिया जिसमें आदी(अदरख) के साथ मोथा(एक प्रकार का घास) भी पार हो जाता है।

उस समय न चुनाव आयोग का ज्ञान था, न ही चुनाव चिन्ह की उतनी समझ। हां ये समझ जाता था कि सूरज मंडल का तीर-धनुष तो भूदेव चौधरी का मशाल, आज इन सबकी याद इसलिए आई क्योंकि पीएम तो अपना गाँव गोद लेकर, खुद गाँव के गोद में चले गए, और सारा रायता भी फ़ैल ही गया। लेकिन और अन्य गांवो का क्या होगा उसके लिए तो सांसद ही मालिक हैं, इसलिए अब बस यही सोचता हूँ कि बांका जिला और भागलपुर प्रमंडल के तहत आने वाले मेरे गाँव "हरचंडी" को भी पीएम जी बेड़ा पार लगवा देते तो बढियां रहता। मने की जयापुर के संगे हमरो गाँव ग्लोबल हो जाता ना। फिलहाल बहुत पिछड़ी स्थिति में है।


नोट:- गाँव से हाईस्कूल तीन किमी की दूरी पर, लड़कियों की शिक्षा दर नगण्य।
-स्वास्थ्य केंद्र की दुरी 6 किमी (जगदीशपुर), एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र 1 किमी दूर अम्हारा गाँव में खुला है, पर डॉक्टर का अता-पता नहीं रहता।
-आबादी 2,500 से ज्यादा, बिजली आ गई है।
-पुस्तकालय हमारे बचपन के समय में हुआ करता था, अब नहीं है।
.....।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

तस्वीरों में BHAGALPUR के धरोहर.....

भागलपुर का संस्कृति काफी समृद्ध रही है... जिसके निशान आज भी बांकी हैं।  अजगैबीनाथ मंदिर, सुल्तानगंज, भागलपुर दिगम्बर जैन मंदिर, भागलपुर.... यही वो पुण्य भूमि कही जाती है जहाँ भगवान वासुपूज्य को जैन धर्मानुसार पाँचों संस्कारों की प्राप्ती हुई थी। जैन धर्मावलम्बीयों के लिए यह मौक्ष भूमि के रूप में जाना जाता है। रविन्द्र भवन(टिल्हा कोठी) अंग्रेज काल में भागलपुर के डीएम का निवास स्थान, रविन्द्र नाथ ठाकुर अपने भागलपुर प्रवास के दौरान यहीं रूके थे और गीतांजलि के कुछ पन्ने यहीं लिखे थे। 12 फरवरी 1883 को स्थापित हुआ यह टी एन बी कॉलेज, बिहार का दुसरा सबसे पुराना महाविद्यालय है, इससे पहले एकमात्र पटना कॉलेज, पटना की स्थापना हुई है राष्ट्रीय जलीय जीव गंगेटिका डाल्फिन, 5 अक्टूबर 2009 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में सुल्तानगंज से लेकर कहलगाँव तक के गंगा नदी क्षेत्र को डाल्फिन सैन्चुरी घोषित किया है। सीढ़ी घाट के नाम से मशहुर ये गंगा के तट का ऐतिहासिक घाट है। गंगा नदी के किनारे का मैदान  भागलपुर शहर के लगभग मध्य में स्थित "घंटाघर" ...

लघु इंसान का लोकतंत्र

नहीं है इसमें पड़ने का खेद, मुझे तो यह करता हैरान कि घिसता है यह यंत्र महान, कि पिसता है यह लघु इंसान,  हरिवंशराय बच्चन की उपरोक्त पंक्तियों में मुझे आज़ का भारतीय लोकतंत्र दिखाई देता है। कुछ ही महीनों बाद दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का मेला लगने वाला है। जिसमें देश की करोड़ों आवादी हिस्सा लेगी। इस मेले से लाखों उम्मीदें जुड़ी हैं शायद उस छोटे से इंसान के जीवन में कुछ परिवर्तन आएगा, लेकिन घूम-फिर कर सूई फिर उसी ज़गह-उन्हीं मुद्दों पर पहुँच जाती है, गरीबी आज़ भी व्याप्त है, आज भी देश में भूखे लोग मौज़ूद हैं, महिलाओं पर अत्याचार रूकने का नाम नहीं ले रहा है, भ्रष्ट्राचार से तो लोग हार मानते जा रहे हैं, और ऐसे में लोकतंत्र के प्रहरी ज़नता के साथ लूका-छिपी का खेल खेलें तो लगता है समस्या का निवारण आने वाली सरकार से भी संभव नहीं हो पाएगा। कहने वाले कहते हैं कि इस लोकतंत्र में एक गज़ब की छमता है यह अपने अंदर स्वशुद्धीकरण की ताकत छुपाए बैठा है। यह तर्क अब दकियानूसी लगता है क्योंकि अवसरवाद की आंधी ने सब कुछ ध्वस्त कर रखा है। हर व्यक्ति अवसरवादी होता जा रहा है। समूची दुनिया...

जगहित में है मानव का सृजन

धन दौलत ईमान नहीं है, पैसा ही एहसान नहीं है। नाम कमाना धर्म नहीं है, केवल जीना कर्म नहीं है। भरी रहस्यों से है सृष्टि, जहाँ-जहाँ जाती है दृष्टि। नील गगन में चमकते तारे, जो जल-जल कर करे ईशारे। धरती पर के फुल हमारे, रंग-बिरंगे कितने न्यारे। फुलों की मुस्कान निराली, वसुधा पर छाई हरियाली। सुबह-शाम की आँख मिचौनी, जूगनू की हर रात दिवाली। सरिता की बहकी फुलझड़ियाँ, सागर में मोती की लड़ियाँ। चला अकेला क्यों रे मानव, तोड़ सबों से प्रेम की कड़ियाँ। जीवन यह त्योहार नहीं है, जीवन यह व्यापार नहीं है। धरती पर मर-मर जीने से, जीने में कोई सार नहीं है। सरिता कल-कल करती जाती, अपनी राह बदलती जाती। जीवन का कुछ मर्म यही है, चलते जाना कर्म यही है। प्रेम का गीत बहाते जाना, जग की लाज बचाते जाना। अपना खून बहाकर भी, इस जग का रूप सजाते जाना। खाली तुम कैसे हो मानव, दिल की छोटी सी धड़कन में सपनों का संसार भरा है। विवेकानंद सिंह (छात्र:- पत्रकारिता)