युवा मन बड़ा ही चंचल होता है, सपनों के संसार में जीना अक्सर उन्हें अच्छा लगता है। वे खुद सपने बुनते हैं और उसमें उड़ान भी भरते हैं, कभी तेज, कभी धीमें इस क्रम में वे लड़खड़ाते भी हैं। जब उसके पैर डगमगाते हैं तो उसका सामना यथार्त से होता है। यथार्त मूलत : सपनों का संघर्ष है जो दिवा-रात्री की गतिविधि में निहित होता है। युवा किसी कार्य की ओर कब आकर्षित हो जाता है, उसे उस बात का तनिक भी एहसास नहीं होता। किसी को पढ़ने का भूत सवार हो जाता है तो किसी को खेलने का। कोई दोस्ती यारी का आनंद लेता है तो कोई घूमने-फिरने का। कितने प्रेम के सागर में गोते लगाते हैं तो कितने भक्ति में मग्न हो जाते हैं। यहाँ स्थिति ऐसी हो जाती है कि वे अगर एक भी दिन इन कार्यों को ना करें तो दिन गुजारना मुश्किल हो जाता है। जीवन में प्रतिदिन कुछ ऐसे काम होते हैं जिसे सम्पादित किये बिना कोई नहीं रह सकता है। परंतु एक युवा जब इन नित्य क्रियाओं के इतर किसी अमुक कार्य को अपनी नित्य क्रिया में शामिल कर लेता है, तो वो कार्य उसके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन जाती है। उस कार्य का युवा मस्तिष्क पर नशा छा जाता है। ऐसे में...