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नवंबर, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

युवाओं में नशा

युवा मन बड़ा ही चंचल होता है, सपनों के संसार में जीना अक्सर उन्हें अच्छा लगता है। वे खुद सपने बुनते हैं और उसमें उड़ान भी भरते हैं, कभी तेज, कभी धीमें इस क्रम में वे लड़खड़ाते भी हैं। जब उसके पैर डगमगाते हैं तो उसका सामना यथार्त से होता है। यथार्त मूलत :  सपनों का संघर्ष है जो दिवा-रात्री की गतिविधि में निहित होता है। युवा किसी कार्य की ओर कब आकर्षित हो जाता है, उसे उस बात का तनिक भी एहसास नहीं होता। किसी को पढ़ने का भूत सवार हो जाता है तो किसी को खेलने का। कोई दोस्ती यारी का आनंद लेता है तो कोई घूमने-फिरने का। कितने प्रेम के सागर में गोते लगाते हैं तो कितने भक्ति में मग्न हो जाते हैं। यहाँ स्थिति ऐसी हो जाती है कि वे अगर एक भी दिन इन कार्यों को ना करें तो दिन गुजारना मुश्किल हो जाता है। जीवन में प्रतिदिन कुछ ऐसे काम होते हैं जिसे सम्पादित किये बिना कोई नहीं रह सकता है। परंतु एक युवा जब इन नित्य क्रियाओं के इतर किसी अमुक कार्य को अपनी नित्य क्रिया में शामिल कर लेता है, तो वो कार्य उसके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन जाती है। उस कार्य का युवा मस्तिष्क पर नशा छा जाता है। ऐसे में...

भरोसे पर हमला....

इतिहास गवाह है महिलाएँ सदियों से पुरूषों की कामातुरता का शिकार बनती आई हैं। और हमारे समाज का नजरीया हमेशा आरोपी से ज्यादा पीड़ित के प्रति असंवेदनशील रहा है। पर ऐसे समय में पाया जाता था कि मीडिया जगत उस पिड़िता के साथ है। मगर अब इस पौरूषिक मानसिकता वाले समाज में, नंगेपन की सारी सीमाएँ टूट चुकी है। आज मीडिया घराने के अंदर अब महिलाएँ सुरक्षित नहीं है। ये समय गहन आत्ममंथन का है, नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब इस सभ्य समाज में हम जानवरों की तरह रहेंगे। और जिस विश्वास पर मीडिया की सारी संरचना टिकी है, वो बनाए रखना असम्भव हो जाएगा। कल तक आसाराम को क्या-क्या ना उपमा देने वाली मीडिया, आज भी आक्रोशित है। लेकिन आज आग उसके ही घर में लगी है।           एक पत्रकार जिसने कई ऐसे कारनामें कर रखे हैं जहाँ एक मीडिया घराने से बड़ा नाम उस व्यक्ति का है। तरूण तेजपाल जिसने रक्षा सौदा घोटाले का पर्दाफाश कर ऐसा तहलका मचाया था कि भाजपा नेता बंगारू लक्ष्मण को जेल जाना पड़ा था। उसी तेजपाल ने घिनौने-पन की सारी हदें पार कर दी। अपनी पत्रिका तहलका के थिंक फेस्ट के दौरान हो...

विश्वासघात

तरून तेजपाल  शब्दों के मकड़जाल में उलझा है अपना देश ना म पर फक्र की जगह शर्म का साया है दुखों के समन्दर में ये कैसा सैलाव आया है दूसरों की दर्द में  बड़ी-बड़ी बात करने वाले आज अपने हाथ जलाकर देखो बिल-बिलाया है कल चिरागों से खेलते थे आज अंधेरे से घबराया है कर्मों की सजा तो भुगत ले बुराई ये कैसा दौर आया है भरोसा कैसे करे कोई ये कैसा रस्म निभाया है विवेकानंद

जीवन की सार्थकता

लोग कहते हैं जीवन नश्वर है। बहुत से महान व्यक्तियों और संतों ने भी इस बात की सत्यता भी प्रमाणित की है। वे बड़े लोग थे उन्हें झूठलाया नहीं जा सकता- लेकिन मेरी समझ में जीवन नश्वर नहीं है। अगर नश्वर होता तो आज विश्व में मानव का आस्तित्व ही नहीं रहता। नश्वर शब्द का तात्पर्य उस वस्तु से है जिसका आस्तित्व ना रहें। किंतु मानव का आस्तित्व था, है, और रहेगा। व्यक्तिगत मृत्यु मानव का विनाश नहीं है। वह सिर्फ निरर्थक पत्तों का गिरना मात्र है। जिससे मानव रूपी वृक्ष की सुन्दरता विकृत ना हो जाय। व्यक्तिगत क्षति मेरी क्षति है। पर मानवता की नहीं...... विवेकानन्द आई आई एम सी

मेरा मन

मन लौट दीवाना चुपके से कुछ याद दिलाता जाता है तोड़ो बंधन मुक्त करो बार-बार कह जाता है सपने कुछ ढह जाते है कुछ मिट्टी में मिल जाता है कुछ ऐसी बातें आती हैं मन चुपके से सह जाता है ये प्रखर ध्वनि जीवन का कुछ मुझसे नित कह जाता है मन लौट दीवाना चुपके से कुछ याद दिलाता जाता है विवेकानंद आई आई एम सी