संसद भवन |
भारतीय मीडिया की एक खासियत है, कि उसे समय-समय पर कोई न कोई कार्टून चरित्र चाहिए। ऐसे में
परिस्थितियाँ अक्सर अनुकूल हो ही जाती हैं। अब माननीय मोदी जी को ले लिजिए, मुझे उनमें और महाकवि कालीदास में काफी समानता दिखती है। बड़े-बड़े
बुद्धिजिवीयों ने मजबूर होकर शकुन्तला पद यानि परम पद के लिए उन्हें अपना
उम्मीदवार घोषित कर दिया। वजह साफ है, उनकी पासपोर्ट बन नहीं पाई तो लेते आए श्रीमान् मोदी महराज को। लिजिए भाई प्रचार तो गजब हो रहा है, झूठ क्या और सच क्या? बढ़िया-बढ़िया लोग कनफूजिया जाते हैं। विकास की परिभाषा रोज बदल रही है
जैसे विकास न हो कि विश्वविद्यालय का पाठ्यक्रम। हम और आप क्या करें बस चमत्कार का इंतजार कर सकते हैं।
समस्या यहीं खत्म होती नहीं दिख रही है, कांग्रेस अलग समस्या से ग्रस्त है, भाई युवराज साहब आउट आॉफ फार्म चल रहें हैं, इसलिए उनकी टीम उन्हें कप्तान चुनने में कतरा रही है। बांकि कई लोग हैं जिन्हें लगता है कि वो परम पद को प्राप्त करें पर सबकी किस्मत सिंह जी के तरह तो नहीं। भाई काफी संशय है सर्वे का काम जोरों पर है नतीजा आ जाए तो घोषणा हो ही जाएगी, तब तक तो माना जाय कि कहानी थोड़ी फिल्मी है।
तीसरे मोर्चे की बात करने से डर लगता है, क्योंकि यहाँ तो अपने-अपने इलाके के क्षत्रप मौजूद हैं। किसी का नाम भूला तो पूरी कहानी खत्म। इसलिए ज्यादा बकैती से कुछ नहीं होने वाला बस जुगाड़ ही मामला फिट कर सकता है।
पहली बार हाथ अजमा रही आम-आदमी पार्टी को लगता है कि सारी जनता ईमानदार है और ईमानदारी के नाम पर उन्हें वोट करेगी, ये क्या सोच लिया भाई? ये पब्लिक मौका देखकर चौका लगाती है। ऐसे दांव तो सब लगा रहे हैं पर किसका दांव निशाने पर बैठेगा ये तो जनता-जनार्दन को ही तय करना है।
लेकिन भाई साहब मीडिया घरानों को क्या चाहिए मोटी सी एड् रेवेन्यू, क्योंकि महाकुंभ में किस्मत बनाने का मौका भगवान सबको देते हैं। बेचारे पत्रकार क्या करे? वे आपको ईशारे ही कर सकते हैं बांकि आपकी मर्जी...क्योंकि इंसान के लिए एक इशारा काफी होता है।.......
समस्या यहीं खत्म होती नहीं दिख रही है, कांग्रेस अलग समस्या से ग्रस्त है, भाई युवराज साहब आउट आॉफ फार्म चल रहें हैं, इसलिए उनकी टीम उन्हें कप्तान चुनने में कतरा रही है। बांकि कई लोग हैं जिन्हें लगता है कि वो परम पद को प्राप्त करें पर सबकी किस्मत सिंह जी के तरह तो नहीं। भाई काफी संशय है सर्वे का काम जोरों पर है नतीजा आ जाए तो घोषणा हो ही जाएगी, तब तक तो माना जाय कि कहानी थोड़ी फिल्मी है।
तीसरे मोर्चे की बात करने से डर लगता है, क्योंकि यहाँ तो अपने-अपने इलाके के क्षत्रप मौजूद हैं। किसी का नाम भूला तो पूरी कहानी खत्म। इसलिए ज्यादा बकैती से कुछ नहीं होने वाला बस जुगाड़ ही मामला फिट कर सकता है।
पहली बार हाथ अजमा रही आम-आदमी पार्टी को लगता है कि सारी जनता ईमानदार है और ईमानदारी के नाम पर उन्हें वोट करेगी, ये क्या सोच लिया भाई? ये पब्लिक मौका देखकर चौका लगाती है। ऐसे दांव तो सब लगा रहे हैं पर किसका दांव निशाने पर बैठेगा ये तो जनता-जनार्दन को ही तय करना है।
लेकिन भाई साहब मीडिया घरानों को क्या चाहिए मोटी सी एड् रेवेन्यू, क्योंकि महाकुंभ में किस्मत बनाने का मौका भगवान सबको देते हैं। बेचारे पत्रकार क्या करे? वे आपको ईशारे ही कर सकते हैं बांकि आपकी मर्जी...क्योंकि इंसान के लिए एक इशारा काफी होता है।.......
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