कल शाम जेएनयू के गंगा ढावा पर बैठ कर दोस्तों के साथ चाय पीते हुए गप्पब़ाजी चल रही थी, तभी आस़मान में एक उड़ता हुआ हवाई जहाज़ दिखा और मैं न जाने कब यादों के गिरफ्त में आ गया। बचपन आँखों के आगे तैरने लगा, गाँव में हवाई जहाज की आवाज सुनते ही कैसे उँचे जगह की तलाश में भागता था और तेज-तेज चिल्लाता था वो रहा हवाई जहाज, और दो रेखाएँ जो उस हवाज जहाज से निकलने वाले धुएँ से बनती थी, उसे मिनटों तक देखता रहता था। आज बड़े करीब से उसी जहाज को देखता हूँ रोज, लेकिन मैं आज भागता नहीं हूँ उसके पीछे न जाने क्यों ये पता नहीं?...
उसी पल अभिषेक बोल पड़ा, जानते हैं विवेक भाई रज़नी कोठारी ने क्या कहा है विकास के बारे में कि "विकास एक भयानक आपदा है" मैंने कुछ पल सोचने के बाद धीरे से कहा, भाई ये अपना-अपना सोचने का नज़रिया है, कोई उपर से पूरे राज्य को देखता है तो चमकती सड़के और उँचे मकान उसे उपलब्धि लगती हैं। वहीं वो व्यक्ति जिसकी पुस्तैनी खेतिहर जमीन किसी कारख़ाने की भेंट या यमुना एक्सप्रेस वे जैसी सड़कों की भेंट चढ़ जाता है तो करोड़ों रूपये पाने के बाद भी विकास उसके लिए तो आपदा जैसी ही होती है। द्वितिय विश्व युद्ध के बाद से विकास भी तो एक इंडस्ट्री ही तो बन गई है, विकास सीधे-सीधे किसी को गरीब बना दे ये कैसे हो सकता है? मैं सोचता रहा तभी अभिषेक बोला 1980 के बाद से भारत में न कोई बड़ी इंडस्ट्री लगी है न कोई उद्योग हुआ है, देश में हुआ है तो बस इनवेस्टमेंट और कंस्ट्रक्सन, इसकी वजह से देश में ठेकेदारी व्यवस्था का जन्म हुआ है।
आज़ादी के बाद भारत ने अपने 6 दशक में बहुत विकास किया है, ये बातें कहते हुए कई राजनीतिज्ञ मिल ही जाते हैं। वो कहीं न कहीं सच ही तो कह रहे होते हैं लेकिन वही विकास किसी के लिए त्रासदी वन सकती है ये कौन जाने? आज शिक्षा एक फलदायी धंधा है जहाँ पैसा के साथ-साथ सम्मान भी मिलता है और कऱ में छुट भी, बड़ी-बड़ी इमारतें, मोटे डिग्रीदार शिक्षक की दम पर छात्रों से मोटी रक़म वसूली जाती है। प्लेसमेंट का सब्जबाग दिखाकर बड़ी-बड़ी कम्पनियों में काम करने के सपने दिखाये जाते हैं, लेकिन जब वही छात्र पढ़कर बाहर निकलता है तो कर्ज के बोझ तले दबा होता है, उसके सपने कर्ज के तले दब जाते हैं फिर वो क्या करता है ये तो वही बता सकता है लेकिन ये सच है कि अच्छे जीवन की तालाश में रोज जीवन से लड़ाई करता है, क्या सच में विकास एक त्रासदी है?
भारी-भारी बातें करते-करते चाय तो खत्म हो गई पर नई उलझन पैदा कर गई कि विकास को भी बुद्धीजीवी एक आपदा बना सकते हैं और वो गलत भी नहीं कहे जा सकते हैं। हवाई जहाज़ की यादें भी कमाल होती हैं बचपन से जवानी तक सपने दिखा सकती है। सच में सपनों भरी जिन्दगी में दोस्तों का साथ किसी क्रिस्पी मसाले से कम नहीं होता है।
उसी पल अभिषेक बोल पड़ा, जानते हैं विवेक भाई रज़नी कोठारी ने क्या कहा है विकास के बारे में कि "विकास एक भयानक आपदा है" मैंने कुछ पल सोचने के बाद धीरे से कहा, भाई ये अपना-अपना सोचने का नज़रिया है, कोई उपर से पूरे राज्य को देखता है तो चमकती सड़के और उँचे मकान उसे उपलब्धि लगती हैं। वहीं वो व्यक्ति जिसकी पुस्तैनी खेतिहर जमीन किसी कारख़ाने की भेंट या यमुना एक्सप्रेस वे जैसी सड़कों की भेंट चढ़ जाता है तो करोड़ों रूपये पाने के बाद भी विकास उसके लिए तो आपदा जैसी ही होती है। द्वितिय विश्व युद्ध के बाद से विकास भी तो एक इंडस्ट्री ही तो बन गई है, विकास सीधे-सीधे किसी को गरीब बना दे ये कैसे हो सकता है? मैं सोचता रहा तभी अभिषेक बोला 1980 के बाद से भारत में न कोई बड़ी इंडस्ट्री लगी है न कोई उद्योग हुआ है, देश में हुआ है तो बस इनवेस्टमेंट और कंस्ट्रक्सन, इसकी वजह से देश में ठेकेदारी व्यवस्था का जन्म हुआ है।
आज़ादी के बाद भारत ने अपने 6 दशक में बहुत विकास किया है, ये बातें कहते हुए कई राजनीतिज्ञ मिल ही जाते हैं। वो कहीं न कहीं सच ही तो कह रहे होते हैं लेकिन वही विकास किसी के लिए त्रासदी वन सकती है ये कौन जाने? आज शिक्षा एक फलदायी धंधा है जहाँ पैसा के साथ-साथ सम्मान भी मिलता है और कऱ में छुट भी, बड़ी-बड़ी इमारतें, मोटे डिग्रीदार शिक्षक की दम पर छात्रों से मोटी रक़म वसूली जाती है। प्लेसमेंट का सब्जबाग दिखाकर बड़ी-बड़ी कम्पनियों में काम करने के सपने दिखाये जाते हैं, लेकिन जब वही छात्र पढ़कर बाहर निकलता है तो कर्ज के बोझ तले दबा होता है, उसके सपने कर्ज के तले दब जाते हैं फिर वो क्या करता है ये तो वही बता सकता है लेकिन ये सच है कि अच्छे जीवन की तालाश में रोज जीवन से लड़ाई करता है, क्या सच में विकास एक त्रासदी है?
भारी-भारी बातें करते-करते चाय तो खत्म हो गई पर नई उलझन पैदा कर गई कि विकास को भी बुद्धीजीवी एक आपदा बना सकते हैं और वो गलत भी नहीं कहे जा सकते हैं। हवाई जहाज़ की यादें भी कमाल होती हैं बचपन से जवानी तक सपने दिखा सकती है। सच में सपनों भरी जिन्दगी में दोस्तों का साथ किसी क्रिस्पी मसाले से कम नहीं होता है।
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