सूरज कुंड मेला प्रवेश द्वार |
मेला दिलों का आता है इक बार आके चला जाता है
आते हैं मुसाफ़िर जाते हैं मुसाफ़िर
जाना ही है उनको क्यों आते हैं मुसाफ़िर।।........ जी हाँ मेला आकर चला जाता है लेकिन छोड़ जाता यादें, अक्सर मेला जाने के बारे में सुनकर ही युवा मन रोमांचित हो उठता है, उपर से वो दिन वेलेंटाइन डे हो तो कहना ही क्या? सूरज कुंड में प्रतिवर्ष 01फरवरी से लेकर 15फरवरी तक लगने वाले इस हस्तशिल्प मेले का 28वां वर्ष था, और इस बार मेले का थीम राज्य था "गोवा"
गोवा आपका स्वागत करता है सूरज कुंड में |
शैक्षनिक भ्रमण के मद्देनज़र 14 फरवरी 2014 को आईआईएमसी (हिन्दी पत्रकारिता) की हमारी पूरी टोली पहुँची सूरज कुंड अंतर्राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेला, फरीदाबाद।
हमलोगों को बताया गया था कि सूरज कुंड मेले में छात्रों को प्रवेश शुल्क पर 50% की छुट मिलती है, हमलोग पहुँचे ़प्रवेश टिकट लेने तो पता चला कि कोइ छुट नहीं मिल रही है, कारण बताया गया कि छुट सिर्फ कार्यदिवस पर मिलता है, चूंकि उस दिन संत रविदास जयंती थी। लेकिन हमारी टोली बगावत पर उतर आई, भाई ये तो सरासर अन्याय है, तभी एक मेला अधिकारी ने हमारी भीड़ देखी, उन्होंने आकर हमसे पुछा तो उन्हें सारी बातें बताई गई, भले सज्जन निकले श्रीमान् कहा चलिए मैं डिस्काउंट करवा देता हूँ।
तब जाकर छुट मिली और हमलोगों ने मेला परिसर में प्रवेश किया।
मेला परिसर में प्रवेश करते हुए हमारी टोली |
मेला परिसर में प्रवेश करते ही हम सभी अपने-अपने स्पेशल कोर ग्रुप में बंट गये, चूंकि उस दिन मौसम का मिज़ाज़ भी बड़ा रूमानी एहसास़ दे रहा था, इसलिए ज्यादातर लोग खासम-खास़ मित्र के साथ रहना चाह रहे थे और सारे आँखों की तालाश वहीं से शुरू हो गई। हमारे साथ थे ओमप्रकाश धीरज़ जी और श्री कृष्ण सिंह सर।
मेला दर्शन के पहले पड़ाव के रूप में हम पहुँच गये एयर गन से निशाना लगाने वाले की दुकान पर, ओम बाबू ने पुछा कितने का है भाई... इस पर दुकानदार बोला 50रू. में दस फाय़र, उसके इतना बोलते ही एक बात तो समझ में आ गई कि अंदर का मेला थोड़ा महंगा है।
आगे ज्यों-ज्यों हम बढ़ते जा रहे थे एक से कलाकृतियाँ आँखों को मोहित करने का कोई मौका नहीं छोड़ रही थी। जगह-जगह भगवान बुद्ध की प्रतिमा भीड़ के बीच भी असीम शांति का एहसास़ करा रही थी। हर ओर गोवा के दर्शन अनायास हो जा रहे थे। हरियाणा भी छाया हुआ था मेले में, हरियाणा दा हुक्का और बड़ी घूमावदार मुछों वाले मर्द क्या नज़ारा था। मेले कि एक खासियत थी कि हम चलते-चलते फिर वहीं पहुँच जाते जहाँ से चलते थे।
गौतम बुद्ध की प्रतिमा |
हमारे ओम भाई साहब को दो चीजों से अतिरिक्त लगाव है एक तो केरी बैग और दूसरा चप्पलों से, उनकी निग़ाहें अच्छी और खूब़सूरत चीजें तालाश रहीं थी तो मैं मेले में गुम सा हो गया था। आते-जाते सुन्दर एक से बढ़कर एक इंसान, बच्चे मेरे मन में अजीब हलचल पैदा कर रही थी। तभी एक सूचनापट्ट की ओर ध्यान गया लिखा था कि छोटे बच्चों की हाथ में मोबाइल नम्बर लिख दें या उनकी ज़ेब में लिखकर डाल दें। इसी क्रम में चलते-चलते एक प्यारा सा बच्चा मिल गया, जिसे देखते ही किसी को भी प्यार आ जाए...
ओम बाबू और वो प्यारा बच्चा |
देश के सारे राज्यों के राष्ट्रीय हस्तशिल्पी के अलावे 27 अलग-अलग देशों के हस्तशिल्पी भी अपने शिल्प के साथ मेले में मौज़ूद थे, अफ़गानिस्तान की खूबसूरत कालीन और चादर के रंग ही लाजबाव थे। श्रीलंका का तो द्वार सज़ा हुआ था, श्रीलंका के हस्तशिल्प के साथ-साथ खाने भी उपलब्ध थे। गोवा से आए कलाकारों के लिए मंच था जिस पर वो अपने कलाओं से सभी को अभिभूत कर रहे थे।
गोवा के कलाकारों के लिए बना मंच |
हमारे साथ मेला गये हमारे पथ प्रदर्शक कृष्ण सर |
एफिल टावर ख़ुद पेरिस से मेले तक पहुँचा था वो भी कई संख्या में |
जंगल का हाथी मेले मे |
वृक्ष को भी कपड़े पहनाए गये थे भाई |
इसे देखते ही लगा कि हाँ यही है मेला |
महादेव की ज़टा से गंगा नहीं फिलहाल पानी की धारा |
हाँ एक समस्या का पता चला मेला घूमते हुए कि वारिष की वज़ह से कई दुकानों की शिल्प भींग जाने की वज़ह से खराब हो जाने की हालत में थी। लेकिन मेला प्रशासन प्लास्टिक की चादर व्यवस्था नहीं कर पाई थी। बांकि तो थोड़ा मेला आपलोगों ने भी देख ही लिया। कुछ फोटो मेरे मित्रों द्वारा ली गई है।
मेले के बहुत सारे अनोखे पल मैं स्मृति में समेटे तो रहा लेकिन लिखने में उन्हें समेट नहीं पाया खेद है।
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