सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

जीवन, प्रेम और खुशियों की पटकथा

बसंत ऋतु और प्रेम का रिश्ता बहुत पुराना है, जैसे-जैसे शरद बीतने लगता है तो तन-मन एक नये विहान की अंगड़ाई भरता है। फूलों पर भंवरें मंडराने लगते हैं, वहीं हम इंसानों के साथ भी कुछ ऐसा ही होता है, सामाजिक ताने-वाने के बाबज़ूद हमारा मन कोलाहल करता है, हम अपनी पसंद को रिझाने की कोशिश करने लगते हैं। यहाँ हमारे मित्र गोविन्द कृष्ण का कहना है कि प्रेम का होना ही अपने-आप में सफलता का सूचकांक है, इसके लिए अलग से खुद को सफल दिखाना सौदा हो सकता है प्यार नहीं। खैर सच्चाई जो भी हो प्रेम, प्यार, मुहब्बत ये शब्द शाश्वत हैं, सनातन हैं इससे मनुष्य क्या ज़ानवर भी इंकार नहीं कर सकते हैं।

बसंत निशा में गाता मैं आवाज़ वही पहचाना
अब मुझको ना तड़पाओ मैं तो प्रेम दिवाना


पिछले कुछ दिनों से मैं इस मौसमी बदलाव को महसूस करने की नाकाम कोशिश करता रहा, लेकिन मेरे हिस्से चंद घिसे-पिटे शब्दों के अलावे और कुछ नहीं आया। मुझे लगने- लगा कि मैं एक किसान बन गया हूँ जो कि मेहनत करके बस कुछ शब्द उगा पाया जिसकी बाज़ार में कोई कीमत ही नहीं, लेकिन इस उम्मीद में कि शायद ये मेरे मन को सूकून दे पायेगा इसलिए लगा रहा।


हमारे आईआईएमसी में कई कुत्तों का परिवार रहता है, हमलोगों से उनकी बहुत बनती भी है। विज्ञापन और जनसंपर्क की छात्राएँ कुत्तों को अक्सर बिस्किट खिलाती हैं, एक दिन मेरे मन में भी ख्याल आया कि मैं भी खिलाकर देखूँ, सच कह रहा हूँ जिन दो कुत्तों को मैंने बिस्किट खिलाया वो आज मेरे बहुत अच्छे दोस्त बन गये हैं। जिस प्रकार वो मुझे देखते ही प्रतिक्रिया देते हैं इससे उनका प्यार दिखता है, यहाँ एक बात मेरे समझ में आई कि प्रेम के लिए बस पवित्र भावना की ज़रूरत होती है। जाति, सम्प्रदाय, वर्ग, भाषा, रंग, गुण, अवगुण, लम्बाई, चौड़ाई, उचाँई जैसे शब्द यहाँ कोई मायने नहीं रखते हैं।

आईआईएमसी से सटे बेर सराय में हमारे साथ रेडियो और टीवी पत्रकारिता के जयंत जिज्ञासु रहते हैं, हम दोनों के कई गुण या दोष बहुत मिलते हैं क्योंकि हमारी स्नातक की शिक्षा भागलपुर के एक ही महाविद्यालय से हुई है। बस दोनों के विषय का अंतर है मेरा विषय प्राणी विज्ञान तो जयंत का अंग्रेजी साहित्य, कहानी में जयंत का प्रवेश इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि वो भी प्रेम की जटिलता पर शोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि प्रेम में हमेशा प्यारी वस्तु(इंसान) के खोने का खतरा होता है, इसलिए जब आप किसी से सच में प्यार करने लगते हैं तो उसे बचाये रखने के लिए तरह-तरह के एक्ट करने लगते हैं, यहाँ पर जो जितनी अच्छी एक्टिंग करता है वो उतना अच्छा प्रेमी सावित होता है।

एक हमारे मित्र ओम प्रकाश जी हैं, बड़े भावुक इंसान हैं श्रीमान् से किसी का दुख तो देखा ही नहीं जाता। एक दिन हमारे साथ आईआईएमसी से लौट रहे थे, एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति एकाएक सामने आया और कहने लगा मेरे सारे पैसे चोरी हो गये हैं गुड़गाँव जाना है कुछ पैसे दे दो, मैं सोच में पड़ा था कि दूँ या ना दूँ, मित्र ने 40 रू. तब निकाल कर उसकी हाथ पर रख दिए थे, वो व्यक्ति शुक्रिया बोल कर आगे निकल गया। मैं कुछ बोलता तब तक ओम जी बोल पड़े जब भी किसी के काम आता हूँ तो लगता है कि जिन्दगी कुछ सफल हुई, वरना इतनी सारी डिग्री और सफलता का क्या मतलब? 

मेरे शिक्षक भी कहते हैं कि आपलोग पत्रकारिता करने आये हैं, कुछ तो अलग है आपमें शायद खुद से ज्यादा आप किसी और से प्यार करते हैं। यही प्यार आप पत्रकारों की सफलता की प्रमुख वजह होती है।

मेरे ये छोटे-छोटे संस्मरण ही मेरे जीवन की असली कमाई हैं, मैं किताबों के साथ अपने अनुभवों से भी सीखता हूँ। दोस्त हमेशा बताते हैं कि जहाँ भी रहो, जिस रूप में रहो अच्छा इंसान बन कर रहो, सबका प्रेम पाओगे, खुशी मिलेगी और सफलता भी............।।

टिप्पणियाँ

  1. ये भावुकता वाली बात तो मेरे एक दोस्‍त के साथ भी हुई थी. नागपुर में जब वह स्‍टेशन की तरफ आ रहा था तो एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति पैसे मांगने लगे पैसे खो जाने के नाम पर पर उन्‍होंने अनसुना कर दिया तभी एक सज्‍जन , जो पास से गुजरे उन्‍होंने पैसे दे दिए. परन्‍तु जब मित्र 2 घंटे के बाद लौटे तब भी वही नाट़य क्रम चल रहा था....

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

तस्वीरों में BHAGALPUR के धरोहर.....

भागलपुर का संस्कृति काफी समृद्ध रही है... जिसके निशान आज भी बांकी हैं।  अजगैबीनाथ मंदिर, सुल्तानगंज, भागलपुर दिगम्बर जैन मंदिर, भागलपुर.... यही वो पुण्य भूमि कही जाती है जहाँ भगवान वासुपूज्य को जैन धर्मानुसार पाँचों संस्कारों की प्राप्ती हुई थी। जैन धर्मावलम्बीयों के लिए यह मौक्ष भूमि के रूप में जाना जाता है। रविन्द्र भवन(टिल्हा कोठी) अंग्रेज काल में भागलपुर के डीएम का निवास स्थान, रविन्द्र नाथ ठाकुर अपने भागलपुर प्रवास के दौरान यहीं रूके थे और गीतांजलि के कुछ पन्ने यहीं लिखे थे। 12 फरवरी 1883 को स्थापित हुआ यह टी एन बी कॉलेज, बिहार का दुसरा सबसे पुराना महाविद्यालय है, इससे पहले एकमात्र पटना कॉलेज, पटना की स्थापना हुई है राष्ट्रीय जलीय जीव गंगेटिका डाल्फिन, 5 अक्टूबर 2009 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में सुल्तानगंज से लेकर कहलगाँव तक के गंगा नदी क्षेत्र को डाल्फिन सैन्चुरी घोषित किया है। सीढ़ी घाट के नाम से मशहुर ये गंगा के तट का ऐतिहासिक घाट है। गंगा नदी के किनारे का मैदान  भागलपुर शहर के लगभग मध्य में स्थित "घंटाघर" ...

लघु इंसान का लोकतंत्र

नहीं है इसमें पड़ने का खेद, मुझे तो यह करता हैरान कि घिसता है यह यंत्र महान, कि पिसता है यह लघु इंसान,  हरिवंशराय बच्चन की उपरोक्त पंक्तियों में मुझे आज़ का भारतीय लोकतंत्र दिखाई देता है। कुछ ही महीनों बाद दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का मेला लगने वाला है। जिसमें देश की करोड़ों आवादी हिस्सा लेगी। इस मेले से लाखों उम्मीदें जुड़ी हैं शायद उस छोटे से इंसान के जीवन में कुछ परिवर्तन आएगा, लेकिन घूम-फिर कर सूई फिर उसी ज़गह-उन्हीं मुद्दों पर पहुँच जाती है, गरीबी आज़ भी व्याप्त है, आज भी देश में भूखे लोग मौज़ूद हैं, महिलाओं पर अत्याचार रूकने का नाम नहीं ले रहा है, भ्रष्ट्राचार से तो लोग हार मानते जा रहे हैं, और ऐसे में लोकतंत्र के प्रहरी ज़नता के साथ लूका-छिपी का खेल खेलें तो लगता है समस्या का निवारण आने वाली सरकार से भी संभव नहीं हो पाएगा। कहने वाले कहते हैं कि इस लोकतंत्र में एक गज़ब की छमता है यह अपने अंदर स्वशुद्धीकरण की ताकत छुपाए बैठा है। यह तर्क अब दकियानूसी लगता है क्योंकि अवसरवाद की आंधी ने सब कुछ ध्वस्त कर रखा है। हर व्यक्ति अवसरवादी होता जा रहा है। समूची दुनिया...

जगहित में है मानव का सृजन

धन दौलत ईमान नहीं है, पैसा ही एहसान नहीं है। नाम कमाना धर्म नहीं है, केवल जीना कर्म नहीं है। भरी रहस्यों से है सृष्टि, जहाँ-जहाँ जाती है दृष्टि। नील गगन में चमकते तारे, जो जल-जल कर करे ईशारे। धरती पर के फुल हमारे, रंग-बिरंगे कितने न्यारे। फुलों की मुस्कान निराली, वसुधा पर छाई हरियाली। सुबह-शाम की आँख मिचौनी, जूगनू की हर रात दिवाली। सरिता की बहकी फुलझड़ियाँ, सागर में मोती की लड़ियाँ। चला अकेला क्यों रे मानव, तोड़ सबों से प्रेम की कड़ियाँ। जीवन यह त्योहार नहीं है, जीवन यह व्यापार नहीं है। धरती पर मर-मर जीने से, जीने में कोई सार नहीं है। सरिता कल-कल करती जाती, अपनी राह बदलती जाती। जीवन का कुछ मर्म यही है, चलते जाना कर्म यही है। प्रेम का गीत बहाते जाना, जग की लाज बचाते जाना। अपना खून बहाकर भी, इस जग का रूप सजाते जाना। खाली तुम कैसे हो मानव, दिल की छोटी सी धड़कन में सपनों का संसार भरा है। विवेकानंद सिंह (छात्र:- पत्रकारिता)