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आईआईएमसी की होली...हर हर होली।।

होली खेले पत्रकार, रंग बनी राज़नीत, आईआईएमसी था महल बना, सबने गाया प्रेम गीत।। 

हैप्पी होली,  हैप्पी होली,  हैप्पी होली,  हैप्पी होली,  हैप्पी होली,  हैप्पी होली,  हैप्पी होली,  

रोलीमय संध्या उषा की चोली है
तुम अपने रंग में रंग लो तो होली है।

बच्चन जी की पंक्तियों की तरह अपने रंग में रंगी हुई थी इस बार के आईआईएमसी की होली। हिन्दी पत्रकारिता के छात्रों में होली का खुमार तो, होली के दो दिन पहले से चढ़ चुका था, गुलाल गालों पर मले ज़ा रहे थे अगले पल में ऐसा एहसास हो रहा था मानों प्रिज्म से निकलकर सतरंगी इन्द्रधनुष सबके चेहरे पर छप गया हो। फूलों से खिले-खिले चेहरे चारों तरफ रंगीन खुशबू बिखेर रहे हों। 
होली के खुमार में दो दिन पहले शुरू हो गये भाई
गुलाल से ज़ब चैन ना मिला तो कुछ दोस्तों को बदमाशी सूझी और एक-एक को पकड़ कर किचड़ में पटकना शुरू कर दिया। अब हम ज़ो कहना चाह रहे हैं वो तो अगली तस्वीर से स्पष्ट हो ज़ाऐगी...
इसे तो मैं दोस्तों का प्यार ही कह पाऊँगा।
देखते-देखते होलिका दहन की बारी आ गई, हमारे ओम भाई के दिल में विचार आया कि आईआईएमसी में होलिका दहन होना चाहिए। घर से दूर रहकर ऐसे त्योहार में अक्सर घर की बहुत याद आती है, उस याद को कम करने के लिए....ज़ोर-शोर से तैयारियाँ होने लगी होलिका दहन की। लकड़ियाँ ज़मा करने की प्रक्रिया चल ही रही थी कि हमारी टोली का सामना आनंद सर से हो गया, उन्होंने बड़े प्यार से कहा ऐसा कुछ ना करिएगा कि रंग में भंग पड़ ज़ाए। कुछ देर की मंथन के बाद आखिरकार होलिका दहन पर मुहर लग गई। सर ने दहन के पश्चात होली के गीत भी सुनाए। 

आईआईएमसी के लड़के एवं लड़कियों के बीच अंताक्षरी प्रतियोगिता हुई, जो अपने नाम के मुताबिक अंत होने का नाम ही नहीं ले रही थी। बेनतीज़ा रहे मुकाबले के बाद, दौर चला गाना किसके लिए है?....पहचान। फिर क्या था, दिल के भाव ने जो निकलना शुरू किया तो एक से बढ़कर एक गानों ने समां को रंगीन बना दिया। 
आईआईएमसी की खूबसूरत और टैलेंटेड छात्राएँ
उसी समय वहाँ विकास पत्रकारिता के हमारे कुछ विदेशी मित्र भी हमारी संस्कृति को समझने के लिए आनंद सर से प्रश्न पुछे जा रहे थे। वो बहुत खुश थे कहने लगे कितने सारे और कितने प्यारे पर्व हैं इंडिया में। इट्स रियली ग्रेट कंट्री। हमलोग भी उनके साथ एक तस्वीर में शरिक हो गये।
विकास पत्रकारिता के छात्र के साथ हम लोग होलिका दहन के समय
असली पल तो होली के दिन का रहा ज़ब होली गुलाल से कुर्ता फाड़ तक पहुँच गया। मेरी कहानी क्या बताउँ?.. सोचा था कि रंग लगे कुर्ते को आईआईएमसी की होली के याद में रखूँगा, बहुत बचने की कोशिश की, अभिषेक से तो बच गया लेकिन नित्यानंद, विशाल, बिक्रम और जयंत ने मेरे कुर्ते को शहीद कर दिया।
इस चक्कर में डरता फिरता था किसी के साथ फोटो भी ना खिंचवाई इसका मलाल रहेगा।
होली की मस्ती के बाद आनंद सर के साथ आईआईएमसी कन्याएँ
आनंद सर ने सभी को गुजिया अपने हाथ से बांट कर दिया, साथ में बिना भांग वाली ठंडई की भी व्यवस्था थी। डी जे की अनुपस्थिति में ड्रमर को बुलाया गया था। उन्होंने सबको झूमने पर मज़बूर कर दिया। ढेनकनाल सेंटर की छात्रा अमिता ज़म कर नृत्य कर रही थी उसका साथ दे रही थी विज्ञापन एवं जनसंपर्क की विदिशा, वो भी होली रंग में पूरी सरावोर थी।
होली के हुड़दंग की जिम्मेदारी इनके ड्रम पर निर्भर थी
आनंद सर की हिदायत थी कि कोई शराब नहीं पिऐंगे, और सिर्फ सूखी वाली(गुलाल वाली) होली खेलेंगे, पहली हिदायत पर तो सभी ने गौर फरमाया लेकिन सूखी होली की ज़गह, होली गीली हो गई। इसमें कई ऐसे चेहरे हैं जिनका प्रमुख योगदान रहा, होली को ये टैग दिलवाने में कि "बुरा ना मानो होली है"
ऐसे में मेरे मित्र ओम धीरज़ के रंग पर एक नज़र दौड़ाई जानी चाहिए।
ये हैं जनाब फेस ऑफ होली ओम धीरज़
आईआईएस के प्रशिक्षु ने आनंद सर से न सिर्फ नृत्य करवाया बल्कि उन्हें भी रंग में भिंगोया। सच में यूं ही नहीं कह रखा था सबने कि आईआईएमसी की होली बहुत यादगार होती है। बहुत याद आयेगी ये होली। हलाँकि इस होली में मुझे जिस एक चेहरे की तालाश थी जो वहाँ मौज़ूद ना था जिसके कारण मेरे रंग थोड़े कम गहरे थे। लेकिन मेरे दोस्तों ने जम कर होली का लुत्फ उठाया। आईआईएमसी की इन दो लड़कियों से मिल लिजिए...बड़ी चर्चित ज़ोड़ी है।
आप हैं सेज़ल और मोही 
तो मेरे भाईयों-बहनों, दोस्तों, प्रेमियो-प्रेमिकाओं, मेरे गुरूजणों को हैप्पी वाला होली 2014।। 
हर हर होली, घर घर होली।।

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