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शेर की महफिल

Dhruv Gupt जी के फ़ेसबुक वाल से साभारः-
कुछ कालजयी शेर और उनके रचनाकार !
कभी कभी कुछ शेर इस क़दर अवाम की जुबान पर चढ़ जाते हैं कि कहावतों और लोकोक्तियों की तरह हमारी बोलचाल और ज़िंदगी का हिस्सा बन जाते हैं। शेर हमारी याददाश्त में रह जाते हैं, लेकिन उनके रचनाकार हमारी स्मृतियों से ओझल हो जाते हैं। आज आपके लिए हाज़िर हैं ऐसे ही कुछ कालजयी शेर, उनके रचनाकारों के नाम के साथ।
ज़िंदगी जिन्दादिली का नाम है
मुर्दादिल क्या खाक़ जिया करते हैं
- शेख इमाम बख्श 'नासिख'
अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जायेंगे
मर के भी चैन न पाया तो किधर जायेंगे
- शेख़ मुहम्मद इब्राहिम जौक
जनाज़ा रोककर मेरा वो इस अंदाज़ से बोले
गली हमने कहा था तुम तो दुनिया छोड़ जाते हो
- सफ़ी लखनवी
ग़ज़ल उसने छेड़ी मुझे साज़ देना
ज़रा उम्रे रफ़्ता को आवाज़ देना
- सफ़ी लखनवी
बड़े शौक़ से सुन रहा था ज़माना
हमीं सो गए दास्तां कहते कहते
- साक़िब लखनवी
न आंखों में आंसू न होंठों पे हाए
मगर एक मुद्दत हुई मुस्कुराए
-बहजाद लखनवी
रूठने वालों से इतना कोई जाकर पूछे
ख़ुद ही रूठे रहे या हमसे मनाया न गया
-मुईन एहसन 'जज़्बी'
तुम्हें ग़ैरों से कब फुर्सत हम अपने ग़म से कब ख़ाली
चलो बस हो चुका मिलना न तुम ख़ाली न हम ख़ाली
- मिर्ज़ा ज़फर अली 'हसरत'
बहुत शोर सुनते थे पहलू में दिल का
जो चीरा तो कतरा-ए-खूं भी न निकला
- ख्वाज़ा हैदर अली 'आतिश'
मुझे फूंकने से पहले मेरा दिल निकाल लेना
ये किसी की है अमानत मेरे साथ जल न जाए
-अनवर मिर्जापुरी
सूरज लहूलुहान समंदर में गिर पड़ा
दिन का गुरूर टूट गया शाम हो गई
-हसन कमाल
उनको आता है प्यार पर गुस्सा
हमको गुस्से पे प्यार आता है
- अमीर मीनाई
तू है हरजाई तो अपना भी यही तौर सही
तू नहीं और सही और नहीं और सही
- दाग देहलवी
वही रात मेरी वही रात उसकी
कहीं बढ़ गई है कहीं घट गई है
- फानी बदायूनी
हमको मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं
हमसे ज़माना ख़ुद है, ज़माने से हम नहीं
- ज़िगर मुरादाबादी
आशिक़ी से मिलेगा ऐ ज़ाहिद
बंदगी से ख़ुदा नहीं मिलता
- दाग देहलवी
ये हुनर भी बड़ा ज़रूरी है
कितना झुककर किसे सलाम करो
- हफीज़ मेरठी
ज़ाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर
या वो जगह बता दे जहां पर ख़ुदा न हो
- दाग देहलवी
दिल के किस्से कहां नहीं होते
हां ये सबसे बयां नहीं होते
- साक़िब लखनवी
दरियाए हुस्न और भी दो हाथ बढ़ गया
अंगड़ाई ली जो यार ने दो हाथ उठा के
- शेख इमाम बख्श नासिख
मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर
लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया
- मज़रूह सुल्तानपुरी
गज़ब किया तेरे वादे पे एतबार किया
तमाम रात क़यामत का इंतज़ार किया
- दाग देहलवी
दुश्मनों ने तो दुश्मनी की है
दोस्तों ने भी क्या कमी की है
- नरेश कुमार शाद
मैं जिसके हाथ में एक फूल देके आया था
उसी के हाथ का पत्थर मेरी तलाश में है
- कृष्ण बिहारी 'नूर'
देखोगे तो हर मोड़ पे मिल जाएंगी लाशें
ढूंढोगे तो इस शहर में क़ातिल न मिलेगा
- मलिकज़ादा मंजूर
जान देना किसी पे लाज़िम था
ज़िंदगी यों बसर नहीं होती
- उमराव जान 'अदा '
क़िस्मत की खूबी देखिए टूटी कहां कमंद
दो चार हाथ जबकि लबे बाम रह गया
- क़ायम चांदपुरी
मेरे मौला मेरी आंखों में समंदर दे दे
चार बूंदों से गुजारा नहीं होगा मुझसे
- इशरत किरतपुरी
लुत्फ़े दोज़ख भी लुत्फ़े ज़न्नत भी
हाय क्या चीज़ है मुहब्बत भी
- ख़ुमार बाराबंकवी
कच्चे घड़े भी हो गए अक़्सर नदी के पार
मजबूत किश्तियों को किनारा नहीं मिला
- मुस्तफ़ा ज़ैदी
जब मैं चलूं तो साया भी अपना न साथ दे
जब तुम चलो ज़मीन चले आसमां चले
- जलील मानिकपुरी
न इतराइए देर लगती है क्या
ज़माने को करवट बदलते हुए
- दाग देहलवी
वतन की रेत मुझे एडियां रगड़ने दे
मुझे यक़ीन है पानी यही से निकलेगा
-नाज़िश प्रतापगढ़ी
मुझे फरमाईशें घेरे खड़ी है
कि पहला दिन मेरी तनख्वाह का है
-मौज रामपुरी
मेरे खुदा मुझे इतना तो मोतबर कर दे
मैं जिस मकान में रहता हूं उसे घर कर दे
-इफ्तेखार आरिफ़
गुनगुनाता जा रहा था एक फ़क़ीर
धूप रहती है न साया देर तक
-नवाज़ देवबंदी
एक मुद्दत से मेरी मां नहीं सोई ताबिश
मैंने एक बार कहा था मुझे डर लगता है
-ताबिश
इन्हीं रास्तों से चलकर अगर आ सको तो आओ
मेरे घर के रास्ते में कोई कहकशां नहीं है
-मुस्तफ़ा ज़ैदी
वो लम्हा जब मेरे बच्चे ने मां कहा मुझको
मैं एक शाख से कितना घना दरख़्त हुई
-हुमैरा रहमान

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