सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

जून, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बजट और हमारी अपेक्षाएं !!

कुछ दिनों बाद वर्ष 2014-15 का बजट आएगा, सबकी उम्मीदें उस बजट से लगी हैं कि आखिर उसमें उनके लिए क्या होगा खास? ऐसे ही बजट से मेरी भी कुछ उम्मीद और आकांक्षाएं हैं। इस सरकार के लिए सबसे अच्छी बात ये है कि उनको बजट को लेकर किसी तरह का राजनीतिक दबाव नहीं होगा। रेल किराया की बढ़ोत्तरी के जरिये राजस्व जमा कर सरकार सुविधा देने की बात तो कर रही है। लेकिन ये कदम महंगाई को और बढ़ाएग ा। चुनाव के समय गुजरात के विकास चालीसा का खूब पाठ हुआ था, अब समय आ रहा है कुछ करके दिखाने का। कदम कड़े हों या मनभावन लेकिन बजट का टिकाऊ और समावेशी होना अनिवार्य है। टैक्स टैक्स स्लैब में कुछ बदलाव की उम्मीद है, अधिक आय वालों पर सरचार्ज बना रहे वो कुछ हद तक सही है। स्वास्थ्य स्वास्थ्य मंत्री जी भारतीय सभ्यता की बात तो कर रहे हैं, लेकिन स्वास्थ्य समस्या उससे सुधरने वाली नहीं है। -महिला, बच्चे और वृद्ध के स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए विशेष पहल की जरुरत है। -नकली दवाइयों के कारोबार को रोकने के लिए सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है। -जीवन रक्षक दवाइयां की अनिवार्यता लागू हो। -पुरे देश के हर एक गाँव में अम्मा मेडिकल की तर...

सोशल माया और हमला!!

सोशल मीडिया ने हम जैसे इन्टरनेट भोगी लोगों को रिएक्टिव बना डाला है। जिससे हमारे रिफ्लेक्सन की छमता घटती जा रही है। हम एक दुसरे की बातों में उलझ जाते हैं। वैचारिक मतभेद अत्यावश्यक है, लेकिन आलोचना स्तरीय हो तो सुखद होता है। रेल भाड़ा बढ़ाया जाना जरुरी हो सकता है, लेकिन सुखद कतई नहीं। जब भी कोई सरकार ऐसे निर्णय लेती है तो उसका दीर्घकालिक असर हो सकता है, लेकिन जेनेरल, स्लीपर और मा ल गाड़ी का किराया बढ़ना मतलब सीधे सीधे गरीब का दुःख बढ़ना। आप भी वही उपाय करेंगे जो 10 वर्ष से कांग्रेस जन कर रहे थे तो लोग बोलेंगे ही। कुछ तो अलग करिए, रेलवे एक ब्रांड है, और प्रधानमंत्री मोदी जी ब्रांड के महापुरुष हैं। ऐसे में कुछ तो चक्कर है इतने बड़े बढ़ोत्तरी में। देखिये इंतजार किया जाए आखिर क्या क्या बदलाव आते हैं। प्रतिक्रिया में बहुत से सुझाव होते हैं। मेरी बात लीजिये बिहार और यूपी में अक्सर रात की यात्रा टी टी बाबा को 100 की नोट खिलाते हुए सो कर गुजर जाती है। उसपर लगाम लगे तो बहुत रेवेन्यू जेनरेट होगा। धनबाद का तो सबको पता होगा वहां कैसे रेल के अधिकारी से लेकर गैंग मैन तक कोयला कैरिज की हेरा फेरी में शामिल है...

पत्रकारिता-समय और संघर्ष!!

पत्रकारिता यूं तो कहने के लिए बड़ा ही नोबल प्रोफेशन है, और कुछ हद तक यह सच भी है। यह एक ऐसा मंच है जहाँ से आप न सिर्फ अपनी बात बड़े पैमाने पर कह सकते हो, साथ ही साथ अपनी नज़र से लोगों को दुनिया के अलग-अलग रंग-रूप भी दिखा सकते हो। ये तो पत्रकारिता तक की बात थी, लेकिन एक सच्चे और अच्छे पत्रकार के जीवन में जब घुस कर देखिएगा तो वो बड़ा अजीब अनुभव देगा। उसका अपना जीवन ठीक उस दि ये जैसा दिखेगा, जिसके कारण रौशनी तो होती है लेकिन उसके अपने चारों तरफ अँधेरा होता है। इसलिए ऐसे साथी जिनके पास पत्रकारिता को लेकर एक स्पष्ट दूर दृष्टी नहीं हो वो इस पेशे में न ही आयें तो बेहतर होगा। पत्रकारिता का स्वरुप बदलते बदलते इतना बदल गया है कि कभी-कभी पत्रकार को एहसास होता है वो पत्रकारिता नहीं पी आर कर रहे हैं। आजादी के बाद से तकनीक ने भी पत्रकारिता करने के ढंग को बदला। जब से इंडिया में टी वी की पत्रकारिता शुरू हुई तब से यह फील्ड ग्लैमरस होता गया, और खास तौर पर युवाओं को इसने अपनी ओर आकर्षित किया। अब पत्रकार बनने की जगह युवा एंकर बनने के सपने देखने लगे, वही सपना लिए वो आई आई एम सी, जामिया और अन्य प्राइवेट मीडिया...

महिला के खिलाफ अपराध- दोषी कौन

पिछले एक महीने से उत्तर प्रदेश(यूपी) के कानपुर में हूँ और जागरण प्रकाशन के आई नेक्स्ट में ट्रेनी सब एडिटर के पद पर काम कर रहा हूँ। जब से यूपी आया हूँ लगभग रोज महिला के खिलाफ अपराध के मामले सामने आ रहे हैं, पिछले 10 दिनों में कुल 6 रेप के वारदात प्रकाश में आए हैं। यह आंकड़ा किसी भी प्रदेश के प्रशासन और पुलिस के लिए न सिर्फ शर्म की बात है बल्कि ये लॉ एण्ड ऑर्डर के पूरी तरह विफल होने की ओर इशारा भी करता है। यहाँ शर्म की बात उस प्रदेश के लोगों के लिए भी है जिसके समाज में ऐसे जघन्य अपराध हो रहे हैं। महिला के खिलाफ होने वाले अपराध की चरमसीमा दिल्ली के 16 दिसंबर वाली घटना में पूरा देश देख चुका है, उस घटना के बाद मुझे लगा था कि शायद अब देश बदलेगा, लोगों की सोच बदलेगी, लेकिन उस समय से अब तक हजारों रेप की घटनाएं हो चुकी होंगी। सबकुछ जस का तस है और तो और एक तरीके से रेप का ट्रेंड जैसा चल पड़ा है। बदायूं में दो चचेरी बहनों को रेप के बाद पेड़ से लटकाना, फिर बहराइच और मुरादाबाद में उसी अंदाज में घटना को अंजाम देना यह दर्शाता है कि अपराधी के हौसले कितने बुलंद और खौफनाक हैं। आम नागरिक को तो...

एक और बदलाव की जरूरत!!

कितना कुछ बदल गया इन बीते हुए कुछ महिनों में, घर के दिवारों पर लगे चूना में भी अब दाग-धब्बे नजर आ रहे हैं। मैं जब गया था इन दरों-दीवार को छोड़कर तो कितनी चमक रही थी ये दीवारें। आज एकाएक ऐसा लगा कि अपने ही घर में मेहमान बन गया हूँ, मैं सबको पहचान रहा था लेकिन, मुझे सब अंजानी निगाहों से देख रहे थे। पुराने कुएं की ओर गया तो संजय मिला, वहीं खड़ा था, हाई स्कूल तक हम दोनों ने साथ में पढ़ाई की थी उसने बताया कि बगल वाली काकी(चाची) गुज़र गई!! मैंने दोहराया कौन? अरे वही जो तेरे घर से सटा जिनका आंगन था। सिर्फ ओह!! की आवाज नकली मेरे मुख से, उन्हें डाईबिटीज(सुगर की बीमारी) हो गया था। बहुत गरीबी और बेबसी की जिन्दगी जी रही थी वो। कैसा दौर आ गया है सुगर खाने-पीते लोगों की बीमारी मानी जाती थी अब तो इसने भी गरीबों के घर में कब्जा कर लिया है। पूरे दिन ही मानों मेरे आँखों के आगे कई कहानी, फिल्मों के फ्लेश बैक की तरह गुजरता रहा, हर कोई जो मिलता नई खबर सुनाता। भोलू चाचा(भोला प्रसाद) बचपन में बहुत खेलता था इनके साथ, उन्होंने बताया कि मुन्ना की शादी हो गई, बहुत दहेज मिला है, लड़की भी फिल्मी हिरोइन क...