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एक और बदलाव की जरूरत!!

कितना कुछ बदल गया इन बीते हुए कुछ महिनों में, घर के दिवारों पर लगे चूना में भी अब दाग-धब्बे नजर आ रहे हैं। मैं जब गया था इन दरों-दीवार को छोड़कर तो कितनी चमक रही थी ये दीवारें। आज एकाएक ऐसा लगा कि अपने ही घर में मेहमान बन गया हूँ, मैं सबको पहचान रहा था लेकिन, मुझे सब अंजानी निगाहों से देख रहे थे।

पुराने कुएं की ओर गया तो संजय मिला, वहीं खड़ा था, हाई स्कूल तक हम दोनों ने साथ में पढ़ाई की थी उसने बताया कि बगल वाली काकी(चाची) गुज़र गई!! मैंने दोहराया कौन? अरे वही जो तेरे घर से सटा जिनका आंगन था। सिर्फ ओह!! की आवाज नकली मेरे मुख से, उन्हें डाईबिटीज(सुगर की बीमारी) हो गया था। बहुत गरीबी और बेबसी की जिन्दगी जी रही थी वो। कैसा दौर आ गया है सुगर खाने-पीते लोगों की बीमारी मानी जाती थी अब तो इसने भी गरीबों के घर में कब्जा कर लिया है।

पूरे दिन ही मानों मेरे आँखों के आगे कई कहानी, फिल्मों के फ्लेश बैक की तरह गुजरता रहा, हर कोई जो मिलता नई खबर सुनाता। भोलू चाचा(भोला प्रसाद) बचपन में बहुत खेलता था इनके साथ, उन्होंने बताया कि मुन्ना की शादी हो गई, बहुत दहेज मिला है, लड़की भी फिल्मी हिरोइन की तरह दिखती है। मैंनें विस्मय में कहा हां चाचा, वो तो सीए है न बहुत पैसा कमाता होगा, दहेज का क्या करेगा?

चाचा ने कहा कि बेटा दहेज से ही तो स्टेंडर्ड शो होता है! मतलब चाचा जी मैंने पुछा तो, उन्होंने कहा कि अधिक दहेज जिसे मिलता है उससे उसकी समाज़ में इज्जत बढ़ती है। वाह चाचा क्या बात कही आपने, जब आप अपनी बेटी सोनी की ब्याह कर रहे थे तो दहेज के पैसे जमा करते-करते आपका चेहरा तो सूख कर आधा हो गया था, आज तक सबका कर्जा नहीं चुका पाएं हैं तो फिर आप ऐसा कैसे कह सकते हैं? चाचा बोले अरे बेटा मैं तो सिर्फ सच बोल रहा हूं। मैं तो दहेज के चक्कर में ऐसा बरबाद हुआ कि राजा को पढ़ाई छोड़ प्राइवेट नौकरी करनी पड़ी, वो आगे पढ़ना चाहता था पर क्या करता घर के हालात ही ऐसे हो गये थे। तुम्हारी चाची बीमार रहती है लेकिन ईलाज नहीं करवा पाता हूं, बहुत पैसे लगेंगे डाक्टर को दिखाने में, क्या करूं? बस बेटी का ब्याह कर लिया समझों सारी चिंता खत्म हो गई है।

आजकल तो दिन ऐसे खराब हो गए हैं कि मत पूछो, गरीब की कुवांरी बेटी दुनिया की सबसे बड़ी बोझ होती है। दिन प्रति दिन पापी लोग बढ़ते ही जा रहे हैं। तुम तो पत्रकार हो न, जो खबर लिखता है, तुम्हें तो मालूम ही होगा कि रोज कितना खाली रेप का ही घटना होता है। जयन्त के यहां था टीवी पर बता रहा था रेप करके मार दिया, य़े सब सरकार की वजह से होता है, देखो तो पैसा कमाने के लिए जगह-जगह शराब का ठेका(दुकान) खोल रखा है। नशे में आदमी तो जानवर हो जाता है उसे मां बहन कुछ दिखता है।

उ जो चौधरी का बेटा है वो बैहार(खेत) तरफ जलधर की बेटी से छेड़खानी कर रहा था, वो तो अपना पप्पु आ रहा था उधर से तो उस बच्ची की इज्जत बच गई। बहुत मारा पप्पु ने उस बदमाश को तो उसके बाप ने उल्टे थाने में पप्पु के खिलाफ  केस दर्ज करवा दिया की, उसके बेटा को मारा और उसके घर में लूटपाट करना चाहता था, पप्पु गरीब है पुलिस उसको परेशान कर रही है। भागा फिरता है बेचारा गांव में कोई उसकी मदद भी नहीं करता, एक तो पूरे गांव में चौधरी के जात वाले ज्यादा हैं और उपर से चौधरी ने जलधर को भी धमकी दे रखी है की उसकी बेटी कुछ न बोले। बेचारा मजदूर आदमी है जलधर एक भी दिन काम बंद हुआ तो खाने के लाले पड़ जाएंगे।

मैं सन्न था, आवाक था, भोलू चाचा की बातें मेरे अंदर तूफान ला रही थी। पूरे देश में यह क्या हो रहा है? कहीं आने वाले बहुत बड़े बदलाव का यह एक संकेत तो नहीं। महिला को, नारी को, मां को, बहन को ही रौद्र-शक्ति रूप लेना होगा।
जाति का वर्गीकरण करके एक से दूसरे को छोटा दिखाने की होड़ जो हमारी सामाजिक शिक्षा ने हमें दे रखी है, उसे त्यागने का वक्त आ गया है। अभी भी नहीं जागे तो मानवता की मृत्यु हो जाएगी और इसके अपराधी पूरे पढ़े लिखे समाज के लोग होंगे जो बातें बड़ी-बड़ी करते हैं लेकिन दोगली मानसिकता के संवाहक भी बने होते है। किस बात का गर्व की मेरे बाबूजी ने मेरे नाम में सिंह लगा दिया और किस बात का छोभ कि जगजीवन बाबू के पिता ने उनके नाम में राम लगा दिया।

झा, मिश्रा, उपाध्याय, तिवारी, चतुर्वेदी, दिक्षित, राय, द्विवेदी, त्रिवेदी, दूवे, चौवे, सिंह, चौधरी, यादव, दास, तांती, लौहार, ठाकुर जैसे शब्दों की औछी मानसिकता से अब बाहर निकलने की जरूरत है। नहीं तो कब तक चलेगा कि दलितों को नीचा दिखाने के लिए दलित की बेटी से रेप कर दो, यादवों को नीचा दिखाने के लिए यादव की बेटी से रेप कर दो, या, ठाकुर को नीचा दिखाने के लिए उसकी बेटी से रेप कर दो। आखिर कब तक?  अंग्रेजों ने फूट डालने के लिए जो कूड़ा हमारे मस्तिष्क में भर दिया है उसे ऐसे कब तक ढोते रहोगे।

हम भारत के लोग, भारत को संपूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न गणराज्य कब बनाएंगे। इस पर सोचने ही नहीं अमल करने की जरूरत है। गर्व किजिए अपने भारतीय होने पर। सोच को भारतीयता में समाहित करें तभी हमारी, आपकी, हम सब की मां बहने सुरक्षित हो पाएंगी। क्योंकि बलात्कारी चाँद से नहीं आता हमारे आपके बीच का रहने वाला वो नपुंसक मर्द है। जिसे फांसी पर लटकाने के साथ-साथ अपनी घंटियां सोच को भी फांसी पर लटकाने की जरूरत है। जैसे सबकुछ बदलता है वैसे ही आज एक और बदलाव की सख्त आवश्यक्ता है।

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