दोस्त जब एकजुट होते हैं तो मानों धरती पर आकाशगंगा उतर आती है। ऐसा लगता है जैसे वीरान वादियों के बोझिल सन्नाटे में रंग-बिरंगे तारे जगमगा उठे हों। मन कब बच्चा बन जाता है पता ही नहीं चलता। उस समय बस सबसे जी भर के गले लग जाने को दिल चाहता है। न कोई गिला-शिकवा और न ही कोई शिकायत!
कुछ तो बात है इन फिजाओं में |
कल यानी कि 28 मार्च की शाम जेएनयू के पूर्वांचल का कुछ ऐसा ही नज़ारा था। हमारे अनन्य मित्र "अभिषेक कुमार चंचल" और उनके हम जैसे स्नेही स्वजनों के सहयोग से लिट्टी-चोखा के बहाने आईआईएमसी के दोस्तों का मिलन हुआ। वो बीते लम्हें फ़्लैशबेक की तरह हमारी नज़रों के सामने थे।
जब सोचता हूँ तो गहराईयों में उतर जाता हूँ |
शाम तो ऐसे गुजरी जैसे सामने से कोई ग़ज़ल गुजर रही हो। सच कहता हूँ दिल करता रहा कि इस शाम को बस यूँ ही मुठ्ठी में थाम कर रख लूँ, लेकिन दिल में बसी यादों और कुछ तस्वीरों के सिवाय हम उस पल को बीत जाने से रोक न सके। नौकरी और कुछ निजी बाध्यताओं की वजह से सारे मित्र तो नहीं आ सके लेकिन जो आये उनसे मिलकर ऐसा लगा जैसे चैत के महीने में बहते-बहते खुद बसंत चला आया है।
हम बंदे हैं प्यार के मांगे सबकी खैर |
मैं आप सभी प्रिय मित्रजनों के प्रति दिल से आभार व्यक्त करता हूँ क्योंकि आपके मिलने से मेरे जीवन की शुष्क होती धारा में प्राण वायु का संचार हो गया है।
द मैन हू इज विहाइंड द ऑल हैप्पिनेस |
दिल के करीब रहने वाले लोगों की मुस्कराहट में शायद इतनी ताक़त होती है कि वो आपको खुलकर मुस्कुराने का एक बहाना दे देती है। एकबार पुन: अभिषेक भाई और समृद्धि दीक्षित जी का हृदय से आभार व्यक्त करना चाहूँगा, गर आप दोनों न होते तो हम सभी के चेहरे पर यूँ चौड़ी-चौड़ी मुस्कान न बिखरी होती।
यही उम्मीद करता हूँ कि ऐसे दिन आते रहेंगे,
हम यूँ ही हमेशा हँसते, गाते और गुनगुनाते रहेंगे।
आपका
विवेकानंद
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