सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

क्या संभव है जल के बिना जीवन की कल्पना?

May 7, 2015
फोटो साभार- अभिषेक कुमार चंचल
मौजूदा समय में प्रकृति बात-बात पर हमें डराती हुई मालूम पड़ती है। चाहे वह केदारनाथ की त्रासदी हो, बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि हो, नेपाल में आया भयंकर भूकंप हो या फिर उत्तर पूर्व बिहार में आए भयंकर तूफान हो, आपदा की ये सारी निशानियाँ चीख-चीख कर कहती है कि जीवन सही मायनों में दिन-प्रतिदिन और कठिन होती जा रही है। भौतिकतावादी होने के दौरान प्रकृति के साथ हुए दोहन ने “जलवायु परिवर्तन” रूपी विकट समस्या को हमारे सामने ला खड़ा किया है। कभी-कभी बस मन में एक ही सवाल उठता है कि क्या जल के बिना जीवन की कल्पना की जा सकती है?

एक तरफ भारत सरकार की गंगा-सफाई योजना ने नदियों के प्रदूषण की तरफ तो देश का ध्यान आकृष्ठ किया है लेकिन देश में पानी का प्रदूषण सिर्फ नदियों तक ही सीमित नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक भारत में लगभग 9.7 करोड़ लोगों को ही पीने का साफ पानी मिल पाता है। हालांकि संयुक्त राष्ट्र की उस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दुनिया की जरूरतें पूरी करने के लिए पानी का स्त्रोत पर्याप्त है, लेकिन उसके सही प्रबंधन की जरूरत है। देश के कई राज्यों से भूजल में आर्सेनिक मिले होने की खबरें आती रहती हैं। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में करीब साठ प्रतिशत बीमारियों का मूल कारण जल प्रदूषण है। भूजल में आ रहे परिवर्तन की मुख्य वजह में से एक बिना ट्रीट किए हुए रसायनिक कचरे का झीलों, तालाबों और नदियों में बहाया जाना है। देश में आर्थिक विकास के कारण उद्योग तो बन रहे हैं, लेकिन सरकार की उदासिनता और लापरवाही की वजह से भूजल के रूप में पीने का पानी भी जहर बनता जा रहा है।

water-is-life-harit-khabar

 पानी प्रकृति द्वारा हमें दी गई अनेक धरोहरों में से सबसे अनमोल धरोहर है। हमारे जीवन के हर हिस्से में पानी की आवश्यकता होती है। पानी के बिना ना तो इस संसार की कल्पना की जा सकती है। पृथ्वी के हर जीव के लिये सबसे जरूरी चीज पानी ही है। हर साल जब गर्मियों में मौसम का पारा बढ़ने लगता है हर तरफ जल संकट गहराने लगता है। शहरी क्षेत्र हो या ग्रामीण, पानी की समस्या दोनों जगह समान रूप से गंभीर होती जा रही है।

अपने देश भारत में सभी को साफ और शुद्ध पानी मुहैया कराना एक बड़ी चुनौती है। भारत में विश्व की 17 प्रतिशत से ज्यादा आबादी बसती है। जबकि विश्व के जल स्त्रोतों की तुलना में यहाँ पानी की उपलब्धता मात्र 4 प्रतिशत है। यदि हम पूरे विश्व की बात करें तो धरती का लगभग 70 प्रतिशत भाग पानी से घिरा है लेकिन इनसे पीने लायक पानी की मात्रा महज 3 प्रतिशत है इसमें से भी 2 प्रतिशत पानी महासागरों में ग्लेशियर के रूप में है जिससे हमारे हिस्से में मात्र 1 प्रतिशत पानी ही उपयोग के लिये उपलब्ध है। हालांकि अगर यह शुद्ध रूप से मिले तो पर्याप्त है।

तरक्की की सीढ़ी पर चढ़ रहे हिन्दुस्तान में दिनों-दिन पानी के स्रोत घटते जा रहे हैं। अन्य कामों के लिए इस्तेमाल होने वाले पानी से ज्यादा पीने के पानी की समस्या विकराल रूप धारण कर रही है। हमें पेयजल, रोज के कामकाज, कृषि कार्यों और उद्योग धंधों में पानी की आवश्यकता होती है जिनकी पूर्ति के लिए उपलब्ध जल संसाधनों के साथ-साथ भू-जल का भी जमकर दोहन हो रहा हैं। लगातार हो रहे दोहन से भू-जल का स्तर प्रतिवर्ष 1 से 1.5 प्रतिशत की दर से नीचे जा रहा है। जिसका असर है कि भूजल स्रोत सूखने लगे हैं और जल संकट गहराने लगा है।
hydrological_cycle-harit-khabar

सिर्फ उत्तर प्रदेश में भू-जल विभाग के आंकड़ों के अनुसार पिछले के कुछ वर्षों में प्रदेश के कुल 820 ब्लॉक में से 630 ब्लॉक में भू-जल स्तर काफी नीचे गिरा है। इंडस्ट्री में बढ़ते इस्तेमाल के मद्देनजर भूमिगत जल के अंधाधुंध दोहन से पश्चिमी यूपी में भूमिगत जल का स्तर काफी नीचे चला गया है। जिसकी वजह से किसानों को काफी नीचे से पानी निकाल कर सिंचाई करनी पड़ती है। यही हाल कमोवेश आज पूरे देश का है।

हालांकि बारिश भू-जल स्रोत को बढ़ाने का काम करती है। भारत में करीबन ग्यारह सौ से बारह सौ मिलीमीटर के आसपास बारिश होती है। लेकिन हमारे देश में वर्षा के जल को हार्वेस्ट करने का उचित प्रबंधन नहीं हो पाता, और नतीजा यह है कि उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे नदियों भरे पड़े राज्यों में भी भू-जल संकट गहराता जा रहा है। आवश्यक्ताओं से ज्यादा जल की बर्बादी ने हमारे सामने एक नई आपदा को ला खड़ा किया है। हमारे लिए पानी का भंडारण और पानी को प्रदूषित होने से बचाना एक चुनौती है। हमारे देश में आज भी जल संरक्षण और जल प्रबंधन की दिशा में कोई ठोस प्रयास नहीं हो रहे हैं। जल संरक्षण और संवर्धन के नाम पर नदियों की सफाई कार्यक्रम में भी कुछ खास होता-जाता दिख नहीं रहा है। हमारे मुताबिक नदियों की सफाई के साथ-साथ सरकार को और देश के नागरिक को भू-जल स्तर बढ़ाने के प्रयास पर ध्यान देने की ज्यादा जरूरत है।

जल संरक्षण के मसले पर लोगों में जागरूकता आए इसके लिए सरकार तथा गैर सरकारी संगठनों द्वारा कई तरह के विज्ञापन दिखाए जाते रहे हैं और कई कार्यक्रम किए जाते रहे हैं, लेकिन इन योजनाओं का जमीन पर कभी भी ठोस पहल देखने को नहीं मिला है। इसका नतीजा आने वाले समय में और भयावह हो सकता है। कहीं ऐसा न हो कि पानी हर तरह के खाद्य और पेय पदार्थों से मंहगा हो जाए? प्रकृति में बसने वाले जीवों सहित मानवों में किसान हो या, आम नौकरी पेशा आदमी पानी के बिना जीवन की कल्पना करना भी एक बेइमानी होगी।

560744_195204553933640_978882346_n-विवेकानंद सिंह

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

तस्वीरों में BHAGALPUR के धरोहर.....

भागलपुर का संस्कृति काफी समृद्ध रही है... जिसके निशान आज भी बांकी हैं।  अजगैबीनाथ मंदिर, सुल्तानगंज, भागलपुर दिगम्बर जैन मंदिर, भागलपुर.... यही वो पुण्य भूमि कही जाती है जहाँ भगवान वासुपूज्य को जैन धर्मानुसार पाँचों संस्कारों की प्राप्ती हुई थी। जैन धर्मावलम्बीयों के लिए यह मौक्ष भूमि के रूप में जाना जाता है। रविन्द्र भवन(टिल्हा कोठी) अंग्रेज काल में भागलपुर के डीएम का निवास स्थान, रविन्द्र नाथ ठाकुर अपने भागलपुर प्रवास के दौरान यहीं रूके थे और गीतांजलि के कुछ पन्ने यहीं लिखे थे। 12 फरवरी 1883 को स्थापित हुआ यह टी एन बी कॉलेज, बिहार का दुसरा सबसे पुराना महाविद्यालय है, इससे पहले एकमात्र पटना कॉलेज, पटना की स्थापना हुई है राष्ट्रीय जलीय जीव गंगेटिका डाल्फिन, 5 अक्टूबर 2009 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में सुल्तानगंज से लेकर कहलगाँव तक के गंगा नदी क्षेत्र को डाल्फिन सैन्चुरी घोषित किया है। सीढ़ी घाट के नाम से मशहुर ये गंगा के तट का ऐतिहासिक घाट है। गंगा नदी के किनारे का मैदान  भागलपुर शहर के लगभग मध्य में स्थित "घंटाघर" ...

लघु इंसान का लोकतंत्र

नहीं है इसमें पड़ने का खेद, मुझे तो यह करता हैरान कि घिसता है यह यंत्र महान, कि पिसता है यह लघु इंसान,  हरिवंशराय बच्चन की उपरोक्त पंक्तियों में मुझे आज़ का भारतीय लोकतंत्र दिखाई देता है। कुछ ही महीनों बाद दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का मेला लगने वाला है। जिसमें देश की करोड़ों आवादी हिस्सा लेगी। इस मेले से लाखों उम्मीदें जुड़ी हैं शायद उस छोटे से इंसान के जीवन में कुछ परिवर्तन आएगा, लेकिन घूम-फिर कर सूई फिर उसी ज़गह-उन्हीं मुद्दों पर पहुँच जाती है, गरीबी आज़ भी व्याप्त है, आज भी देश में भूखे लोग मौज़ूद हैं, महिलाओं पर अत्याचार रूकने का नाम नहीं ले रहा है, भ्रष्ट्राचार से तो लोग हार मानते जा रहे हैं, और ऐसे में लोकतंत्र के प्रहरी ज़नता के साथ लूका-छिपी का खेल खेलें तो लगता है समस्या का निवारण आने वाली सरकार से भी संभव नहीं हो पाएगा। कहने वाले कहते हैं कि इस लोकतंत्र में एक गज़ब की छमता है यह अपने अंदर स्वशुद्धीकरण की ताकत छुपाए बैठा है। यह तर्क अब दकियानूसी लगता है क्योंकि अवसरवाद की आंधी ने सब कुछ ध्वस्त कर रखा है। हर व्यक्ति अवसरवादी होता जा रहा है। समूची दुनिया...

जगहित में है मानव का सृजन

धन दौलत ईमान नहीं है, पैसा ही एहसान नहीं है। नाम कमाना धर्म नहीं है, केवल जीना कर्म नहीं है। भरी रहस्यों से है सृष्टि, जहाँ-जहाँ जाती है दृष्टि। नील गगन में चमकते तारे, जो जल-जल कर करे ईशारे। धरती पर के फुल हमारे, रंग-बिरंगे कितने न्यारे। फुलों की मुस्कान निराली, वसुधा पर छाई हरियाली। सुबह-शाम की आँख मिचौनी, जूगनू की हर रात दिवाली। सरिता की बहकी फुलझड़ियाँ, सागर में मोती की लड़ियाँ। चला अकेला क्यों रे मानव, तोड़ सबों से प्रेम की कड़ियाँ। जीवन यह त्योहार नहीं है, जीवन यह व्यापार नहीं है। धरती पर मर-मर जीने से, जीने में कोई सार नहीं है। सरिता कल-कल करती जाती, अपनी राह बदलती जाती। जीवन का कुछ मर्म यही है, चलते जाना कर्म यही है। प्रेम का गीत बहाते जाना, जग की लाज बचाते जाना। अपना खून बहाकर भी, इस जग का रूप सजाते जाना। खाली तुम कैसे हो मानव, दिल की छोटी सी धड़कन में सपनों का संसार भरा है। विवेकानंद सिंह (छात्र:- पत्रकारिता)