विवेकानंद सिंह
एक तरफ तो केंद्र की भाजपा सरकार आपातकाल के दिनों को याद करते हुए आँसू बहा रही है। वहीं दूसरी तरफ मालेगाँव बम ब्लास्ट मामले में विशेष सरकारी वकील रोहिणी सालियान ने अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस को दिए साक्षात्कार में एक सनसनीखेज खुलासा किया है कि पिछले एक साल से, “जब से एनडीए सरकार सत्ता में आई है” उनके ऊपर काफी दबाव बनाया जा रहा हैं। उनपर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने दबाव बनाया कि वे इस मामले में नरम रवैया अपनाएं।
अब आप ही बताइये क्या यह एक तरह का अघोषित आपातकाल नहीं है? अगर सच में सरकार का रवैया ऐसा है तो उस पर आप क्या कहेंगे? इन कृत्यों से सरकार का न सिर्फ चाल, चरित्र और चेहरा सामने आता है, बल्कि यह आपातकाल पर बड़ी-बड़ी बातें करने का भी ढोंग सामने आता है। क्या कोर्ट में जिस मामले की सुनवाई हो रही उसे प्रभावित करने की कोशिश सरकारी मशीनरी की मनमानी करना नहीं है? हालांकि एनआईए ने इन आरोपों से इंकार किया है, लेकिन क्या इंकार कर देने भर को सच मान लिया जाय या फिर उस वकील को जिसने यह खुलासा किया है। इस मामले में सरकार की चुप्पी के क्या मायने हो सकते हैं?
गौर फरमाइयेगा यह मालेगांव ब्लास्ट, 29 सितंबर 2008 में रमज़ान के दौरान हुआ था। इन धमाकों में अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के चार लोगों की मौत हो गई थी। इस धमाके में 79 लोग घायल भी हुए थे। ब्लास्ट की शुरुआती जांच के बाद इस मामले में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, कर्नल प्रसाद, श्रीकांत पुरोहित समेत 12 लोगों को गिरफ़्तार किया गया था। अब तक इनमें से 4 लोगों को ज़मानत मिल चुकी है। कोई आश्चर्य नहीं होगा कल जब सारे लोग रिहा हो जाएँ। शायद इस देश की नियति ही ऐसी रही है जहाँ हमेशा से कमजोर वर्ग को मौत से भी बदतर जिन्दगी जीने को मजबूर होना पड़ता है। हर धर्म, जाति और संप्रदाय से उपर उठकर बस एक बार सोचिए कि उस पिता पर क्या गुजर रही होगी जिसने धमाके में अपने 19 साल के जवान बेटे को खोया होगा?
अभी हाशिमपुरा नरसंहार मामले पर कोर्ट के फैसले को आए हुए ज्यादा दिन नहीं हुए हैं। मैं हाशिमपुरा का ही जिक्र इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि वहाँ भी मारे जाने मुसलमान थे। कोर्ट के पब्लिक प्रोसिक्युटर पर अगर ऐसे दबाव डाले जाने की कोशिशें होती हैं तो यह लोकतंत्र और न्यायपालिका की विश्वसनीयता के उपर बड़ा खतरा है। आखिर देश में किस कानून का राज है? रोहिणी कहती हैं कि एनआईए के अफसर ने बताया कि ऊपर बैठे लोग नहीं चाहते कि वे इस मामले में महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश हों और इस मामले में कोई और वकील सरकार की ओर से पक्ष रखेगा। सरकार ऐसा करके किसकी मदद करना चाहती उसे जवाब देना चाहिए? देश की आम जनमानस को अपनी न्याय व्यवस्था पर बड़ा यकीन रहता है लेकिन अगर ऐसे कारनामों वाली सरकार होगी तो कैसा न्याय और क्यों न्यायपालिका? ये आप तय कर सकते हैं।
रोहिणी सालियान एक प्रख्यात वकील हैं जिन्होंने कई चर्चित मामलों मे सरकार की तरफ से पैरवी की है। जेजे गोलीकांड, बोरीवली दोहरा हत्याकांड, भरत शाह और मुंबई धमाकों जैसे मामलों में भी वे वकील रह चुकी हैं। ऐसे में असली आरोपी को सजा दे पाने में कोर्ट नाकाम रहती है तो लोगों का न्यायपालिका से विश्वास घटेगा। खासतौर से उनका भरोसा जिन्हें लगता है कि उनके साथ भेदभाव होता आया है। ऐसे खुलासे इस डर को और पुख्ता करते हैं। सरकार तो बहुमत की बांसुरी से अपने हर फैसले पर खुद से वाह-वाह कर रही है। लेकिन आपातकाल के लिए सिर्फ दूसरों को कोसने से बेहतर होगा कि थोड़ी देर के लिए सरकार अपने गिरेवां में भी झांक कर देख लें।
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