सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

पर्यावरण तुमसे हमारा ये रिश्ता क्या कहलाता है?

पर्यावरण और हमारा रिश्ता अटूट होता है। अगर पर्यावरण को क्षति होगी तो हमें भी क्षति होगी। कई लोगों को लगता है कि आखिर ये पर्यावरण चीज क्या है? तो एक बात जानना बहुत आवश्यक है कि हमारा असली घर, हमारा पर्यावरण ही है, और अभी जिस घर में हम रह रहे हैं वह इस पर्यावरण रूपी घर के अंदर का घर है। अपने घर की हमें कितनी चिंता रहती है, दीवार में गलती से एक खरोंच भी आ जाए है तो लगता है कि दिल के सारे अरमां आँसुओं में बह ही जाएंगे। फिर ऐसे ही अरमां पर्यावरण के लिए क्यों नहीं? हलांकि पर्यावरण को बिगड़ने से बचाने की जिद में यूएनइपी 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाती हैं।

जल-थल और वायु की मौजूदगी वाले हमारे पर्यावरण में प्रदूषण नामक प्राणी ने अपना अधिपत्य कायम करना शुरू कर दिया है। प्रदूषण हमारे ही अस्तित्व के लिए खतरा है। सबसे कमाल की बात तो यह है कि दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित 20 शहरों में से 13 शहर भारत से हैं। यहाँ हमने अमेरिका, चीन और यूरोप के विकसित देशों को भी पछाड़ दिया है। सोचिए एक तरफ देश की आधा से ज्यादा आबादी गरीबी की चपेट में है और जो बाकी बचे हैं वह प्रदूषण की चपेट में, इसका साफ संकेत यह है कि हम पर्यावरण को लेकर खासे उदासिन हैं।

हम जैविक विविधताओं के मामले में अफ्रीका को टक्कर देने की स्थिति में थे, लेकिन दिन-प्रतिदिन बढ़ते प्रदूषण के चलते कई तरह की पक्षिय़ाँ विलुप्त हो चुके हैं और होने के कगार पर हैं। उत्तरी बिहार में एक समय में वल्चर (गिद्ध) बहुतायत पाए जाते थे लेकिन आज वो लगभग समाप्त हो चुके हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह मवेशियों में दर्द निवारक डाइक्लोरोफिनेक का इस्तेमाल रहा। गोरैया भी विलुप्ति के कगार पर ही है, वैज्ञानिकों के शोध के मुताबिक इसकी संख्या में भारी गिरावट आई है। ये सारे लक्षण महज एक बायोलॉजिकल इंडिकेटर हैं, कल विलुप्त होने वालों में हम सब भी हो सकते हैं।

अब सवाल यह है कि आखिर ये सब हो क्यों रहा है? अगर कारणों पर नजडर दौड़ाएँ तो इसका सबसे पहला और मूल कारण बढ़ती आबादी है, ज्यों-ज्यों आबादी बढ़ती जा रही है पेड़-पौधों वाले जंगल कटते जा रहे हैं और कांक्रीट के जंगल खड़े हो रहे हैं। जो हमें पर्यावरण असंतुलन की ओर ले जा रहा है। बेतहाशा विकास की तरफ बढ़ते मानव ने प्राकृतिक सीमाओं का उल्लंघन जारी रखा है। आज ग्लोबल वार्मिग का असर ऐसा हो चुका है कि कभी भी वर्षा, कभी भी धूप आम बात होती जा रही है। पिछले 150 वर्षों में कार्बन डाई ऑक्‍साइड के उत्‍सर्जन की दर इससे पहले के हजारों सालों की दर से अधिक है। दुनियाभर में करीब 20 करोड़ लोग सिर्फ वायु प्रदूषण से प्रभावित हैं।

भारत के लिए समस्या और विकट है, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक भारत की राजधानी दिल्ली दुनियाभर में सबसे ज्यादा प्रदूषित है। यहां वायु प्रदुषण का स्तर 163 यूजी/एम3 मापा गया जो इसे दुनिया का सबसे ज्यादा वायु प्रदूषित देश बनाता है। डब्ल्यूएचओ का कहना है कि दुनिया के 20 प्रदूषित शहरों में से आधे से ज्यादा भारत में ही हैं। हालांकि दिल्ली के वायु प्रदूषण आंकड़े को लेकर सरकार ने डब्ल्यूएचओ से सवाल भी उठाया था और आंकड़ों को गलत करार दिया था। लेकिन आंकड़ें झूठला देने भर से सच्चाई तो नहीं बदली जा सकती है।


इंफोग्राफ क्रेडिट हिन्दुस्तान टाइम्स
इंफोग्राफ क्रेडिट हिन्दुस्तान टाइम्स


प्रदूषण की दास्तां कुछ ऐसी है कि नदियों के प्रदूषण के मामले में भी भारत पहले स्थान पर हैं, डब्ल्यूएचओ के मुताबिक गांगा सबसे प्रदूषित नही है। अब तय यह करना है कि इस समस्या से निपटा कैसे जाए? भारत एक ऐसा देश है जहाँ एक तरफ समस्या का मॉडल खड़ा होता है तो दूसरी तरफ समाधान का भी मॉडल सामने आ जाता है।

बिहार के भागलपुर जिला का एक गाँव धरहरा कुछ ऐसा ही मॉडल प्रस्तुत करता है जहाँ हर घर में बेटी के जन्म पर फलदार वृक्ष के दो पौधे लगाए जाते हैं, जिससे हरियाली तो बढ़ती ही जा रही है और नए रास्ते भी खुलते जा रहे हैं। हमारे देश में पौधारोपन के कार्यक्रम तो काफी होते हैं लेकिन क्या वह पौधा वृक्ष बन भी पाता है या नहीं कोई देखने वाला नहीं रहता है। आज विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने निवास 7 रेसकोर्स पर पौधा लगाया। इसके बाद प्रधानमंत्री पूरे देश में पौधा लगाने के अभियान की शुरुआत करने वाले हैं। यह एक अच्छी पहल हो सकती है और आज देश को इसकी जरूरत भी है।

save-earth-विवेकानंद सिंह
(युवा पत्रकार, विज्ञान, तकनीकी और राजनीति में विशेष दिलचस्पी )
आलेख हरित खबर में प्रकाशित

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

तस्वीरों में BHAGALPUR के धरोहर.....

भागलपुर का संस्कृति काफी समृद्ध रही है... जिसके निशान आज भी बांकी हैं।  अजगैबीनाथ मंदिर, सुल्तानगंज, भागलपुर दिगम्बर जैन मंदिर, भागलपुर.... यही वो पुण्य भूमि कही जाती है जहाँ भगवान वासुपूज्य को जैन धर्मानुसार पाँचों संस्कारों की प्राप्ती हुई थी। जैन धर्मावलम्बीयों के लिए यह मौक्ष भूमि के रूप में जाना जाता है। रविन्द्र भवन(टिल्हा कोठी) अंग्रेज काल में भागलपुर के डीएम का निवास स्थान, रविन्द्र नाथ ठाकुर अपने भागलपुर प्रवास के दौरान यहीं रूके थे और गीतांजलि के कुछ पन्ने यहीं लिखे थे। 12 फरवरी 1883 को स्थापित हुआ यह टी एन बी कॉलेज, बिहार का दुसरा सबसे पुराना महाविद्यालय है, इससे पहले एकमात्र पटना कॉलेज, पटना की स्थापना हुई है राष्ट्रीय जलीय जीव गंगेटिका डाल्फिन, 5 अक्टूबर 2009 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में सुल्तानगंज से लेकर कहलगाँव तक के गंगा नदी क्षेत्र को डाल्फिन सैन्चुरी घोषित किया है। सीढ़ी घाट के नाम से मशहुर ये गंगा के तट का ऐतिहासिक घाट है। गंगा नदी के किनारे का मैदान  भागलपुर शहर के लगभग मध्य में स्थित "घंटाघर" ...

लघु इंसान का लोकतंत्र

नहीं है इसमें पड़ने का खेद, मुझे तो यह करता हैरान कि घिसता है यह यंत्र महान, कि पिसता है यह लघु इंसान,  हरिवंशराय बच्चन की उपरोक्त पंक्तियों में मुझे आज़ का भारतीय लोकतंत्र दिखाई देता है। कुछ ही महीनों बाद दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का मेला लगने वाला है। जिसमें देश की करोड़ों आवादी हिस्सा लेगी। इस मेले से लाखों उम्मीदें जुड़ी हैं शायद उस छोटे से इंसान के जीवन में कुछ परिवर्तन आएगा, लेकिन घूम-फिर कर सूई फिर उसी ज़गह-उन्हीं मुद्दों पर पहुँच जाती है, गरीबी आज़ भी व्याप्त है, आज भी देश में भूखे लोग मौज़ूद हैं, महिलाओं पर अत्याचार रूकने का नाम नहीं ले रहा है, भ्रष्ट्राचार से तो लोग हार मानते जा रहे हैं, और ऐसे में लोकतंत्र के प्रहरी ज़नता के साथ लूका-छिपी का खेल खेलें तो लगता है समस्या का निवारण आने वाली सरकार से भी संभव नहीं हो पाएगा। कहने वाले कहते हैं कि इस लोकतंत्र में एक गज़ब की छमता है यह अपने अंदर स्वशुद्धीकरण की ताकत छुपाए बैठा है। यह तर्क अब दकियानूसी लगता है क्योंकि अवसरवाद की आंधी ने सब कुछ ध्वस्त कर रखा है। हर व्यक्ति अवसरवादी होता जा रहा है। समूची दुनिया...

जगहित में है मानव का सृजन

धन दौलत ईमान नहीं है, पैसा ही एहसान नहीं है। नाम कमाना धर्म नहीं है, केवल जीना कर्म नहीं है। भरी रहस्यों से है सृष्टि, जहाँ-जहाँ जाती है दृष्टि। नील गगन में चमकते तारे, जो जल-जल कर करे ईशारे। धरती पर के फुल हमारे, रंग-बिरंगे कितने न्यारे। फुलों की मुस्कान निराली, वसुधा पर छाई हरियाली। सुबह-शाम की आँख मिचौनी, जूगनू की हर रात दिवाली। सरिता की बहकी फुलझड़ियाँ, सागर में मोती की लड़ियाँ। चला अकेला क्यों रे मानव, तोड़ सबों से प्रेम की कड़ियाँ। जीवन यह त्योहार नहीं है, जीवन यह व्यापार नहीं है। धरती पर मर-मर जीने से, जीने में कोई सार नहीं है। सरिता कल-कल करती जाती, अपनी राह बदलती जाती। जीवन का कुछ मर्म यही है, चलते जाना कर्म यही है। प्रेम का गीत बहाते जाना, जग की लाज बचाते जाना। अपना खून बहाकर भी, इस जग का रूप सजाते जाना। खाली तुम कैसे हो मानव, दिल की छोटी सी धड़कन में सपनों का संसार भरा है। विवेकानंद सिंह (छात्र:- पत्रकारिता)