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आपातकाल : इंदिरा एंड इमरजेंसी इन इंडिया

विवेकानंद सिंह
देश में आपातकाल लगने के 40 साल पूरे होने जा रहे हैं। अगर मैं बात अपने पीढ़ी की करूँ तो हमने आपातकाल को देखा नहीं है। लेकिन अपने बड़े-बूढ़ों में से जिसने भी उस दौर की बातें बताई वह एक भयावह दास्तां थी। कल ही गुड़गांव में रायबरेली के रहने वाले एक वृद्ध मिले। कांग्रेस के प्रति अपार श्रद्धा रखने के बावजूद इमरजेंसी का जिक्र आते ही वह बोले, “उ जो इ लोग नसबंदी कराये लगन था, बड़ा गलत कीन था”।

हर आम-खास जिसने इमरजेंसी को देखा और जिया था, वह आपातकाल को गुलामी से भी बदतर ठहराने को तैयार हुआ। पिछले दिनों जब भाजपा के मार्गदर्शक और वरिष्ठतम नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने अंग्रेजी दैनिक इंडियन एक्सप्रेस को दिये अपने साक्षात्कार में कहा कि वो आज भी ये यकीन से नहीं कह सकते कि अब देश में इंमरजेंसी नहीं लग सकता है।यानी कि देश इमरजेंसी काल से 40 साल आगे बढ़ चुका है लेकिन देश के हालात आज भी कुछ ऐसे हैं जिससे हमारे बुजुर्गों को इमरजेंसी का खतरा नजर आता है। आपातकाल को भारतीय लोकतंत्र के काले अध्याय के रूप में हमेशा याद किया जाता रहा है और आगे भी किया जाता रहेगा।

क्यों लगा था आपातकाल?
25 जून 1975 की रात को आपातकाल के कागजात पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हुए और 26 जून को पूरे देश में आपातकाल लगाए जाने की घोषणा कर दी गई। 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया कि इंदिरा गांधी ने 1971 में रायबरेली चुनाव जीतने के लिए सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल किया था। इसके साथ ही इंदिरा का चुनाव रद्द कर दिया गया और उन्हें छह साल के लिए चुनाव लड़ने से भी अयोग्य घोषित कर दिया गया। लेकिन इंदिरा गांधी ने इस फ़ैसले को मानने से इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की घोषणा की और 26 जून को आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी गई।

क्या था पूरा मामला?
आकाशवाणी पर प्रसारित हुए संदेश में इंदिरा गांधी ने कहा, “जब से मैंने आम आदमी और देश की महिलाओं के फायदे के लिए कुछ प्रगतिशील क़दम उठाए हैं, तभी से मेरे ख़िलाफ़ गहरी साजिश रची जा रही थी।” असल में मामला 1971 में हुए लोकसभा चुनाव का था जिसमें इंदिरा गांधी ने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी राजनारायण को हराया था। लेकिन चुनाव परिणाम आने के चार साल बाद राजनारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी। राजनरायण का कहना था कि  इंदिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग किया, तय सीमा से अधिक खर्च किए और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए ग़लत तरीकों का इस्तेमाल किया। कोर्ट ने इन आरोपों को सही ठहराया। इंदिरा कोर्ट के इस फैसले को बर्दाश्त नहीं कर सकी।

इमरजेंसी लगने की कहानी
बताया जाता है कि कोर्ट के फैसले के बाद इंदिरा काफी परेशान थी 25 जून 1975 की सुबह पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे के फोन की घंटी बजी। उस समय वह दिल्ली में ही बंग भवन के अपने कमरे में अपने बिस्तर पर लेटे हुए थे। दूसरे छोर पर इंदिरा गांधी के विशेष सहायक आरके धवन थे जो कि उन्हे प्रधानमंत्री निवास पर तलब कर रहे थे। जब सिद्धार्थ शंकर रे 1 सफदरजंग रोड पहुंचे तो इंदिरा गांधी अपनी स्टडी में बड़ी मेज के सामने बैठी हुई थीं, जिस पर खुफिया रिपोर्टों का ढ़ेर लगा हुआ था। अगले दो घंटों तक वो देश की स्थिति पर बात करते रहे। इंदिरा ने सिद्धार्थ शंकर रे को इसलिए बुलाया था क्योंकि वह संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ माने जाते थे।

आपातकाल को सही ठहराने के लिए 352 का सहारा
इंदिरा का कहना था कि पूरे देश में अव्यवस्था फैल रही है। गुजरात और बिहार की विधानसभाएं भंग की जा चुकी हैं। इस तरह तो विपक्ष की मांगों का कोई अंत ही नहीं होगा। हमें कड़े फैसले लेने की जरूरत है। सिद्धार्थ शंकर रे ने इंदिरा गांधी से कुछ समय मांगा ताकि उन हालात में उठाए जा सकने वाले कदमों पर विचार कर सकें। शाम पांच बजे वे लौटे और बताया कि देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरे का हवाला देकर धारा 352 के तहत आपातकाल लगाया जा सकता है। वरिष्ठ कांग्रेसी यह खुलासा कर चुके हैं कि ऐसे किसी संवैधानिक प्रावधान के बारे में खुद इंदिरा को कोई जानकारी नहीं थी। जबकि 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान ऐसा किया जा चुका था।

रातों-रात हुआ राष्ट्रपति का हस्ताक्षर
इसके बाद इंदिरा ने सिद्धार्थ शंकर रे को अपने साथ तुरंत तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के पास चलने को कहा। राष्ट्रपति भवन में इंदिरा ने तत्कालीन राष्ट्रपति को सारी वस्तुस्थिति बताई। राष्ट्रपति ने करीब तीस मिनट तक उनकी बात सुनी। इस दौरान उन्होंने संविधान की उस धारा में लिखे गए शब्दों का शब्दशः मतलब भी निकाला और देश में आपातकाल लगाने की मंजूरी दे दी।

घटनाक्रम
  • अगली सुबह 6 बजे कैबिनेट की बैठक : इंदिरा गांधी ने निर्देश दिए कि मंत्रिमंडल के सभी सदस्यों को अगली सुबह 5 बजे फोन कर बताया जाए कि सुबह 6 बजे कैबिनेट की बैठक बुलाई गई है। जब तक आधी रात होने को आ चुकी थी, लेकिन रे अभी भी 1 सफदरजंग रोड पर मौजूद थे। वो इंदिरा के साथ उस भाषण को अंतिम रूप दे रहे थे जिसे इंदिरा अगले दिन मंत्रिमंडल की बैठक के बाद रेडियो पर देश के लिए देने वाली थीं।
  • एक सूची ऐसी भी : प्रधानमंत्री आवास पर देर रात तक बैठकों का दौर चलता रहा। इस दौरान आर के धवन के कमरे में संजय गांधी और ओम मेहता उन लोगों की लिस्ट बना रहे थे जिन्हें गिरफ्तार किया जाना था। उस लिस्ट के अनुमोदन के लिए इंदिरा को बार-बार कमरे से बाहर बुलाया जा रहा था। ये तीनों इस बात की भी योजना बना रहे थे कि अगले दिन कैसे समाचारपत्रों की बिजली काट कर सेंसरशिप लागू की जाएगी। जब तक इंदिरा ने अपने भाषण को अंतिम रूप दिया सुबह के तीन बज चुके थे।
  • तीन को गिरफ्तार करने की मनाही : जब तक 26 जून को तड़के इंदिरा सोने गईं, गिरफ्तारियां शुरू हो चुकी थीं। सबसे पहले जयप्रकाश नारायण और मोरारजी देसाई को हिरासत में लिया गया। इंदिरा गांधी ने सिर्फ तीन लोगों की गिरफ्तारी की अनुमति नहीं दी थी। वो थे तमिलनाडु के नेता कामराज, बिहार के समाजवादी नेता और जयप्रकाश नारायण के साथी गंगासरन सिन्हा, तथा पुणे के एक और समाजवादी नेता एसएम जोशी।
  • सिर्फ एक व्यक्ति ने उठाया सवाल : सुबह निर्धारित समय पर कैबिनेट बैठक हुई। स्वयं इंदिरा ने बताया कि आपातकाल लगा दिया गया है। इस पर वहां मौजूद मंत्रियों में से सिर्फ एक मंत्री ने सवाल पूछा। वो थे रक्षा मंत्री स्वर्ण सिंह। उनका सवाल था, किस कानून के तहत गिरफ्तारियां हुई हैं? इंदिरा ने उनको संक्षिप्त जवाब दिया, जिसे वहां मौजूद बाकी लोग नहीं सुन पाए। कोई मतदान नहीं हुआ, कोई मंत्रणा नहीं हुई।

आजादी के बाद पहली बार सत्ता से बेदखल हो गई कांगेस
इमरजेंसी के कारण विरोध की लहर इतनी तेज़ हुई कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग कर चुनाव कराने की सिफारिश कर दी। चुनाव में आपातकाल लागू करने का फ़ैसला कांग्रेस के लिए इतना घातक साबित हुआ। ख़ुद इंदिरा गांधी अपने गढ़ रायबरेली से चुनाव हार गईं। पहली बार गैर कांग्रेसी पार्टी (जनता पार्टी) भारी बहुमत से सत्ता में आई और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। कांग्रेस को उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में एक भी सीट नहीं मिली।

नई सरकार ने आपातकाल के दौरान लिए गए फ़ैसलों की जाँच के लिए शाह आयोग गठित की। हालाँकि नई सरकार दो साल तक ही टिक पाई और अंदरूनी गतिरोधों के कारण 1979 में सरकार गिर गई। उप प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने कुछ मंत्रियों की दोहरी सदस्यता का सवाल उठाया जो जनसंघ के भी सदस्य थे। इसी मुद्दे पर चरण सिंह ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया और कांग्रेस के समर्थन से उन्होंने सरकार बनाई लेकिन वो भी सिर्फ़ पाँच महीने चल पाई। इस दौरान उनके नाम कभी संसद नहीं जाने वाले प्रधानमंत्री का रिकॉर्ड दर्ज हो गया।” लेकिन इन घटनाक्रमों के बाद इंदिरा फिर सत्ता में वापस लौटी।

(नोट : उपरोक्त आलेख भिन्न-भिन्न माध्यमों से अध्ययन के बाद प्रस्तुत किया गया है, 26 जून 2015 को देश में आपातकाल लगाए जाने के 40 वर्ष पूरे हो जाएंगे।)

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