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मार्च, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आईआईएमसी की होली...हर हर होली।।

होली खेले पत्रकार , रंग बनी राज़नीत, आईआईएमसी था महल बना , सबने गाया प्रेम गीत।।  हैप्पी होली,  हैप्पी होली,  हैप्पी होली,  हैप्पी होली,   हैप्पी होली,  हैप्पी होली,  हैप्पी होली,    रोलीमय संध्या उषा की चोली है तुम अपने रंग में रंग लो तो होली है। बच्चन जी की पंक्तियों की तरह अपने रंग में रंगी हुई थी इस बार के आईआईएमसी की होली। हिन्दी पत्रकारिता के छात्रों में होली का खुमार तो, होली के दो दिन पहले से चढ़ चुका था, गुलाल गालों पर मले ज़ा रहे थे अगले पल में ऐसा एहसास हो रहा था मानों प्रिज्म से निकलकर सतरंगी इन्द्रधनुष सबके चेहरे पर छप गया हो। फूलों से खिले-खिले चेहरे चारों तरफ रंगीन खुशबू बिखेर रहे हों।  होली के खुमार में दो दिन पहले शुरू हो गये भाई गुलाल से ज़ब चैन ना मिला तो कुछ दोस्तों को बदमाशी सूझी और एक-एक को पकड़ कर किचड़ में पटकना शुरू कर दिया। अब हम ज़ो कहना चाह रहे हैं वो तो अगली तस्वीर से स्पष्ट हो ज़ाऐगी... इसे तो मैं दोस्तों का प्यार ही कह पाऊँगा। देखते-देखते होलिका दहन की ...

देश की आधी आबादी में महिला वैज्ञानिक और उनका संघर्ष

तेरे माथे पे ये आँचल, बहुत ही खूब है लेकिन, तू इस आँचल से एक परचम बना लेती तो अच्छा था। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस अवसर पर मजाज़ का ये शेर, सीएसआईआर के जाने-माने वैज्ञानिक और कवि गौहर रज़ा ने विज्ञान प्रसार द्वारा आयोजित कार्यक्रम में कही। CSIR SCIENTIST, GAUHAR RAZA विज्ञान प्रसार और निस्केयर के संयुक्त प्रयास से उन भारतीय महिला वैज्ञानिकों को सम्मानित किया गया जिन्होंने भारत के विज्ञान को नई दिशा और नया स्वरूप दिया है। उन महिला वैज्ञानिकों से आने वाली पीढ़ी प्रेरणा ले सकें इसके लिए प्रो. गौहर रज़ा के निर्देशन में 13 एपिसोड की फिल्म बनाई गई है जिसमें प्रत्येक की समयसीमा 26 मिनट है, जो उन वैज्ञानिकों के जीवन को बताती है। फिल्म का नाम "Scientifically Yours" है। इसके बेहतर प्रसार के लिए फिल्म को भिन्न-भिन्न जगहों पर दिखाने के अलावे इसे यू ट्यूब पर भी डाल दिया जाएगा। "अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस" के उपलक्ष्य में इन फिल्मों के सम्पादित अंश (Curtain Raiser on "Scientifically Yours" A film on Indian Women Scientists) को विज्ञान प्रसार के सभागार में ...

जीवन, प्रेम और खुशियों की पटकथा

बसंत ऋतु और प्रेम का रिश्ता बहुत पुराना है, जैसे-जैसे शरद बीतने लगता है तो तन-मन एक नये विहान की अंगड़ाई भरता है। फूलों पर भंवरें मंडराने लगते हैं, वहीं हम इंसानों के साथ भी कुछ ऐसा ही होता है, सामाजिक ताने-वाने के बाबज़ूद हमारा मन कोलाहल करता है, हम अपनी पसंद को रिझाने की कोशिश करने लगते हैं। यहाँ हमारे मित्र गोविन्द कृष्ण का कहना है कि प्रेम का होना ही अपने-आप में सफलता का सूचकांक है, इसके लिए अलग से खुद को सफल दिखाना सौदा हो सकता है प्यार नहीं। खैर सच्चाई जो भी हो प्रेम, प्यार, मुहब्बत ये शब्द शाश्वत हैं, सनातन हैं इससे मनुष्य क्या ज़ानवर भी इंकार नहीं कर सकते हैं। बसंत निशा में गाता मैं आवाज़ वही पहचाना अब मुझको ना तड़पाओ मैं तो प्रेम दिवाना पिछले कुछ दिनों से मैं इस मौसमी बदलाव को महसूस करने की नाकाम कोशिश करता रहा, लेकिन मेरे हिस्से चंद घिसे-पिटे शब्दों के अलावे और कुछ नहीं आया। मुझे लगने- लगा कि मैं एक किसान बन गया हूँ जो कि मेहनत करके बस कुछ शब्द उगा पाया जिसकी बाज़ार में कोई कीमत ही नहीं, लेकिन इस उम्मीद में कि शायद ये मेरे मन को सूकून दे पायेगा इसलिए लगा रहा। ...

ऐ मेरी कविता

ऐ मेरी कविता, तुम्हें गीत बनाना चाहता हूँ टूटे हुए ख्वाबों को जोड़कर एक स्वप्न सजाना चाहता हूँ। ऐ मेरी कविता , तुम्हारे साथ दूर तक जाना चाहता हूँ इस बेज़ान दुनिया को छोड़कर एक नई दुनिया बसाना चाहता हूँ। ऐ मेरी कविता , तुम्हारे दिल में बसना चाहता हूँ झूठे वादों का तिलिस्म तोड़कर एक सच्चा वादा निभाना चाहता हूँ। ऐ मेरी कविता , तुम्हें उस घर में पहुँचाना चाहता हूँ जहाँ से लौटा हूँ खुद को मोड़कर एक लय में तुम्हें गुनगुनाना चाहता हूँ। ऐ मेरी कविता , तुम्हें अपने और करीब लाना चाहता हूँ पुराने सारे बंधन छोड़कर एक नये बंधन में बंध जाना चाहता हूँ।।

लघु इंसान का लोकतंत्र

नहीं है इसमें पड़ने का खेद, मुझे तो यह करता हैरान कि घिसता है यह यंत्र महान, कि पिसता है यह लघु इंसान,  हरिवंशराय बच्चन की उपरोक्त पंक्तियों में मुझे आज़ का भारतीय लोकतंत्र दिखाई देता है। कुछ ही महीनों बाद दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का मेला लगने वाला है। जिसमें देश की करोड़ों आवादी हिस्सा लेगी। इस मेले से लाखों उम्मीदें जुड़ी हैं शायद उस छोटे से इंसान के जीवन में कुछ परिवर्तन आएगा, लेकिन घूम-फिर कर सूई फिर उसी ज़गह-उन्हीं मुद्दों पर पहुँच जाती है, गरीबी आज़ भी व्याप्त है, आज भी देश में भूखे लोग मौज़ूद हैं, महिलाओं पर अत्याचार रूकने का नाम नहीं ले रहा है, भ्रष्ट्राचार से तो लोग हार मानते जा रहे हैं, और ऐसे में लोकतंत्र के प्रहरी ज़नता के साथ लूका-छिपी का खेल खेलें तो लगता है समस्या का निवारण आने वाली सरकार से भी संभव नहीं हो पाएगा। कहने वाले कहते हैं कि इस लोकतंत्र में एक गज़ब की छमता है यह अपने अंदर स्वशुद्धीकरण की ताकत छुपाए बैठा है। यह तर्क अब दकियानूसी लगता है क्योंकि अवसरवाद की आंधी ने सब कुछ ध्वस्त कर रखा है। हर व्यक्ति अवसरवादी होता जा रहा है। समूची दुनिया...