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जनवरी, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

तुम्हारी याद में.......

वह तो राही था मंजिल का                                             तुमने उसको मान दिया बहुत बड़ा एहसान किया वह याद करेगा राहों में ऐसा तुमने दान दिया राही है पल भर का साथी उसे भुला दे पागल मन राही डाल-डाल का पंछी वह तो विस्तृत नील गगन जिसका है ना छोर-ठीकाना उसको तुम क्या याद करो? खिला फुल तेरा जीवन है उसको मत बर्बाद करो राही था मेहमान तुम्हारा आदर पाकर चला गया राही था उस पार का पंछी डाल छोड़कर चला गया नीर नहीं छलके नयनों से टूटे नहीं मधुर मुस्कान जाता राही मांग रहा है ऐसा ही तुमसे वरदान..।।

तस्वीरों में BHAGALPUR के धरोहर.....

भागलपुर का संस्कृति काफी समृद्ध रही है... जिसके निशान आज भी बांकी हैं।  अजगैबीनाथ मंदिर, सुल्तानगंज, भागलपुर दिगम्बर जैन मंदिर, भागलपुर.... यही वो पुण्य भूमि कही जाती है जहाँ भगवान वासुपूज्य को जैन धर्मानुसार पाँचों संस्कारों की प्राप्ती हुई थी। जैन धर्मावलम्बीयों के लिए यह मौक्ष भूमि के रूप में जाना जाता है। रविन्द्र भवन(टिल्हा कोठी) अंग्रेज काल में भागलपुर के डीएम का निवास स्थान, रविन्द्र नाथ ठाकुर अपने भागलपुर प्रवास के दौरान यहीं रूके थे और गीतांजलि के कुछ पन्ने यहीं लिखे थे। 12 फरवरी 1883 को स्थापित हुआ यह टी एन बी कॉलेज, बिहार का दुसरा सबसे पुराना महाविद्यालय है, इससे पहले एकमात्र पटना कॉलेज, पटना की स्थापना हुई है राष्ट्रीय जलीय जीव गंगेटिका डाल्फिन, 5 अक्टूबर 2009 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में सुल्तानगंज से लेकर कहलगाँव तक के गंगा नदी क्षेत्र को डाल्फिन सैन्चुरी घोषित किया है। सीढ़ी घाट के नाम से मशहुर ये गंगा के तट का ऐतिहासिक घाट है। गंगा नदी के किनारे का मैदान  भागलपुर शहर के लगभग मध्य में स्थित "घंटाघर" ...

स्वन रात का...एक कहानी।

मैं पैदल चला जा रहा था, काला नया फूलपैंट, उजली नई कमीज, पाँव में जूता-मौजा हाथ में घड़ी और जेब में कुछ रूपये, पता नहीं मैं किस मंजील की ओर जा रहा था, मैंने पास में एक राहगीर से पुछा तो पता चला, मैं दुमका(झारखंड) के एक अन्जाने स्थान में हूँ। मैं एक टेक्सी तलाशने लगा, एक टेक्सी मिली भी लेकिन उसने इतना किराया मांगा कि मैं आगे चलते बना। मैं एक अंजान साथी के साथ राह पर चला जा रहा था मंजिल का पता नहीं, कुछ देर बाद मैंने साथी राहगीर से पुछा भाई ये जी टी रोड कितनी दूर है? उसने जबाव दिया बहुत-बहुत दूर। तभी अगले पल वारिष होने लगी मेरे कपड़े भींग गये। मैं चलते-चलते एक गाँव पहुँचा, वहीं सड़क के किनारे दो लड़कियाँ थी, उनके चेहरे पर एक अपूर्व सौन्दर्य दिख रहा था, उन्हें देखते ही मेरी नजर एक पल के लिए ठहर सी गई थी। तभी एहसास हुआ कि मैं भींग रहा हूँ और आगे बढ़ने लगा। थोड़ी दूर चलने पर सामने एक केले का बगान था जिसमें रंग-बिरंगे केले लगे थे, उन्हें देख मेरे मुख में अनायास पानी आ गया.... मुझे भुख भी बहुत लगी थी, मैं केला खाने लगा, अभी आठ-दस ही खाए होंगे कि खेत के प्रहरी ने मुझे पकड़ लिया और ...

आनंदमयी वातावरण....

28 जनवरी, ऋतु हेमंत और आईआईएमसी में आनंद प्रधान सर का जन्मदिन हो तो छात्रों में उत्साह, हर्ष और उमंग का वातावरण स्वाभाविक है....... आनन्द सर का जन्मदिनोत्सव आप जियें हजारों साल-साल के दिन हो पचास हजार,, हैप्पी बर्थडे टू यू. हैप्पी बर्थडे टू यू, जैसे बोल से हिन्दी पत्रकारिता का कक्ष गुंजायमान हो उठा। एक एक कर सारे शिक्षक गण कमरें में प्रवेश कर रहे थे और हर बढ़ते कदम से ताली की गड़गड़ाहट तेज होती जा रही थी। हिन्दी पत्रकारिता विभाग के विभागध्यक्ष डा. हेमन्त जोशी सर और उनके साथ में मेन आफ द डे यानि आनंद प्रधान सर ने जैसे कमरे में प्रवेश किया, सारे छात्र अपने-अपने स्थान पर खड़े हो गये। कक्ष में आईआईएमसी के सभी विभागों के छात्र मौजूद थे जिसकी वजह से कुर्सीयाँ कम पड़ गई थी।  केक काटने की जब बारी आई.... उससे पहले अभिषेक और मैं मोमबत्तियाँ लगा रहे थे, तो अमित सर ने कहा एक मोमबत्ती के दस साल इस पर आनन्द सर ने मुस्कराते हुए जबाव दिया फिर तो पाँच ही लगाना ...... मैं न जाने किस धुन में था,  केक की खुबसूरती के लिए 6 मोमबत्तियाँ लगा दी। इसके बाद सर ने केक काटा और सभ...

नई सुबह

नंग धड़ंग फिरते मानव गंदी गली और नालों में भटक रहा है बंजारों सा देश-देश गलियारों में राजतंत्र न रहा देश में फिर कौन बना अब राजा है पलट डालो तानाशाही अब युग का यही तकाज़ा है सोये इंसानों उठो अब तब धरती फिर से गाएगी लौह बंधन तब टूटेगा नई सुबह फिर आएगी। 

माँ, मेरा घर और यादों का एक कोना.....

भले तुम मुझसे हजारों किलोमीटर दूर हो अभी लेकिन तुम्हारी एक-एक याद को चुनकर अपने साथ यहाँ दिल्ली लेते आया हूँ "माँ"... जिस दिन मैं आ रहा था घर से, मैंने कोशिश की तुम्हारे चेहरे के भाव को पढ़ने की..एक अजीब सी बेचैनी थी तुम्हारे मुख पर, मेरे सामान बांधते हुए बार-बार पुछती थी कि अगली छुट्टी कब है। मैं तुम्हारी भावों को समझ तो रहा था और बोल दे रहा था अगले छ: माह तक कोई छुट्टी नहीं है। अगले कुछ पल के लिए तुम्हारे हाथ रूक जाते थे, लेकिन तुम बोल पड़ी वहाँ फल-दूध जरूर खाना, होटल का खाना खाकर सूख(कमजोर) जाओगे, कितने बजे सोते हो वहाँ? सबेरे सोना और सुबह चार बजे जग जाना, मैं कुछ शांति संदेश(संतमत की निकलने वाली मासिक पत्रिका) दे देती हूँ उसे वहाँ पढ़ना। मैं उसकी सारी बातों पर हाँ हाँ दोहरा दे रहा था। मैं आज यहाँ दिल्ली में हूँ मेरे पिताजी लगभग रोज मुझसे फोन पर बात करते हैं लेकिन मेरी माँ से बात नहीं होती है लेकिन मैं जानता हूँ कि मैं जब भी पिताजी से बात कर रहा होता हूँ मेरी माँ मेरी बातों को सुनती है। मेरी माँ को मेरे पत्रकारिता की पढ़ाई करने से ऐतराज़ था, इससे पहले जूलॉजी से एमएसस...

65 वा गणतंत्र दिवस और हमारी उम्मीद....

आज मैं सोच रहा हूँ कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में मैं कितना खुश हूँ, कितना आजाद हूँ, धीरे-धीरे ही सही गुलामी की सारी बेड़ियाँ टूटती जा रही हैं। रूढ़ीवादी सोच में बदलाव की वयार जारी है, भले ही वक्त ज्यादा लग गया हो, लेकिन इतनी प्राकृतिक विविधताओं, भाषाओं, संस्कृतियों, सभ्यताओं के अतंर के बाद भी हम कन्या कुमारी से लेकर कश्मीर तक के सभी लोगों से उतनी ही मुहब्बत करते हैं जितना हम अपने भाई-बहन, दोस्त, पड़ोसी, रिस्तेदार से करते हैं। हमारे पुरखों ने हमारे भारत को आज के ही ऐतिहासिक दिन 26 जनवरी 1950 को एक ऐसा धर्मग्रंथ दिया जिसका नाम है "संविधान" और एक धर्म की स्थापना हुई जिसका नाम है "गणतंत्र" तब से लेकर आज तक हम भारतीय गणतंत्र की पुजा/इबादत करते हैं। मानवता का ज्ञान, मानव जीवन की सबसे बड़ी पूंजी होती है। हमारे संविधान में वो शक्ति है जिसने हमारे बन्धुत्व, हमारे प्रीत को बनाए रखने में हमारी मदद की है। ऐसा कौन भारतीय नहीं होगा जिसके हृदय में देशप्रेम की गंगा ना बह रही हो,, महाकवि मैथिलीशरण गुप्त ने कहा है...... "जो भरा नहीं है भावों से, जिसमें बहती रसधार...

विकास एक भयानक आपदा है..

कल शाम जेएनयू के गंगा ढावा पर बैठ कर दोस्तों के साथ चाय पीते हुए गप्पब़ाजी चल रही थी, तभी आस़मान में एक उड़ता हुआ हवाई जहाज़ दिखा और मैं न जाने कब यादों के गिरफ्त में आ गया। बचपन आँखों के आगे तैरने लगा, गाँव में हवाई जहाज की आवाज सुनते ही कैसे उँचे जगह की तलाश में भागता था और तेज-तेज चिल्लाता था वो रहा हवाई जहाज, और दो रेखाएँ जो उस हवाज जहाज से निकलने वाले धुएँ से बनती थी, उसे मिनटों तक देखता रहता था। आज बड़े करीब से उसी जहाज को देखता हूँ रोज, लेकिन मैं आज भागता नहीं हूँ उसके पीछे न जाने क्यों ये पता नहीं?...                                                                     उसी पल अभिषेक बोल पड़ा, जानते हैं विवेक भाई रज़नी कोठारी ने क्या कहा है विकास के बारे में कि "विकास एक भयानक आपदा है" मैंने कुछ पल सोचने के बाद धीरे से कहा, भाई ये अपना-अपना सोचने का नज़रिया है, कोई उपर से पूरे राज्य को देखता है तो चमकती सड़के और...

जगहित में है मानव का सृजन

धन दौलत ईमान नहीं है, पैसा ही एहसान नहीं है। नाम कमाना धर्म नहीं है, केवल जीना कर्म नहीं है। भरी रहस्यों से है सृष्टि, जहाँ-जहाँ जाती है दृष्टि। नील गगन में चमकते तारे, जो जल-जल कर करे ईशारे। धरती पर के फुल हमारे, रंग-बिरंगे कितने न्यारे। फुलों की मुस्कान निराली, वसुधा पर छाई हरियाली। सुबह-शाम की आँख मिचौनी, जूगनू की हर रात दिवाली। सरिता की बहकी फुलझड़ियाँ, सागर में मोती की लड़ियाँ। चला अकेला क्यों रे मानव, तोड़ सबों से प्रेम की कड़ियाँ। जीवन यह त्योहार नहीं है, जीवन यह व्यापार नहीं है। धरती पर मर-मर जीने से, जीने में कोई सार नहीं है। सरिता कल-कल करती जाती, अपनी राह बदलती जाती। जीवन का कुछ मर्म यही है, चलते जाना कर्म यही है। प्रेम का गीत बहाते जाना, जग की लाज बचाते जाना। अपना खून बहाकर भी, इस जग का रूप सजाते जाना। खाली तुम कैसे हो मानव, दिल की छोटी सी धड़कन में सपनों का संसार भरा है। विवेकानंद सिंह (छात्र:- पत्रकारिता)

ये कैसा विकास....

चंद अच्छे नस्ल के घोड़े, भारत रूपी रथ तथा उस पर सवार जनता को खींचे जा रही हैं, और हम आगे बढ़ते जा रहे हैं। हमें लग रहा है कि हम विकसीत हो रहे हैं।   लेकिन जब हम अपने हालात पर गौर फरमारते हैं तो सच पुछिये हालत बुरी दिखती है। हम अपने पुराने दिनों की तुलना में कम सुखी हैं । यह दिखता भी है हम सभी को, पर बोलने की जहमत कोई नहीं करता , शायद सबको डर लगता है कि कहीं कोई उसे   पुरातनपंथी ना कह दे।         आज जहाँ देखिये वहीं प्रचार तंत्र का बोलवाला नजर आता है थोड़ी सी चूक और एहसास हुआ कि लूटे गये बाजार में , पैसे का नग्न खेल ऐसा कि यहाँ गंजे को सचमुच में कंघी बेच दिया जा रहा है। कल की ही बात है मैं बेर सराय में एक मिठाई की दुकान पर नाश्ता कर रहा था, वहीं एक बच्चा भी अपनी माता-पिता के साथ कुछ खा रहे थे। बच्चे ने अपनी माँ से कहा..मामा मुझे बिंगो चाहिए, माँ ने मना किया, बच्चा रोने लगा, तो पापा से रहा न गया, जनाब गये और बिंगो के दो पैकेट ले आये। माँ इतने में पत्नी बन गई और पति को आँख दिखाते हुए कहा कि घर में मैंने चिप्स बना कर रखा है वो नहीं खाएगा,...