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जुलाई, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पदकों से भारत की झोली भरने की तैयारी

भारत को रियो ओलिंपिक से पदकों की काफी उम्मीदें हैं, सिर्फ पदक ही नहीं कई खिलाड़ियों ने अपने प्रदर्शन से यह उम्मीद जगायी है कि सोने के तमगे भी हमारे हिस्से आ सकते हैं. 5 अगस्त से 21 अगस्त तक चलनेवाले इस ओलिंपिक महाकुंभ में शामिल होने जा रहे 121 भारतीय खिलाड़ियों पर पूरे देश की निगाहें टिकी हैं. विवेकानंद सिंह की रिपोर्ट. इस ओलिंपिक में भारत के कुछ ऐसे खास चेहरे भी हैं, जिन पर पूरी दुनिया की नजर है. अब तक के इनके प्रदर्शन से भारत की उम्मीदें बंधी हैं. पदकों से भारत की झोली भर कर भारत के मिशन ओलिंपिक को पूरा करने का पूरा दारोमदार इन खिलाड़ियों के कंधे पर है. ब्राजील के शहर रियो डि जेनेरो में ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में दो सौ देशों से करीब दस हजार से ज्यादा एथलीट हिस्सा ले रहे हैं. लंदन ओलंपिक 2012 में जहां भारत की ओर से 83 एथलीट ने हिस्सा लिया था, वहीं इस बार 121 खिलाड़ी भाग ले रहे हैं. इनमें एथलेटिक्स में 38, हॉकी में 32, निशानेबाजी में 12, कुश्ती में 7, बैडमिंटन में 7, तीरंदाजी, टेबल टेनिस और टेनिस में 4-4 खिलाड़ी अपनी चुनौती रखेंगे. कुश्ती के दबंग हैं योगेश्वर 1. योगेश्वर दत्त...

उत्तर प्रदेश की राजनीति में नीतीश कुमार इफेक्ट !

नीतीश कुमार उत्तर प्रदेश की राजनीति में आखिर इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहे हैं? जिस प्रदेश में जदयू का न तो कोई संगठन रहा है और न ही राजनीतिक सक्रियता। ऐसे में बिहार के मुख्यमंत्री की बड़ी-बड़ी रैलियां उनकी भावी राजनीति के लिए कहीं आत्मघाती कदम, तो नहीं साबित होंगी? क्या नीतीश कुमार सच में प्रधानमंत्री बनने के लिए अपनी ब्रांडिंग में जुटे हैं? इन सवालों से इतर यह सवाल सभी के दिमाग में है कि नीतीश कुमार के यूपी आने का सबसे ज्यादा नुकसान किस पार्टी को होगा? नीतीश कुमार की सभाओं में आनेवाली भीड़ उनका हौसला बढ़ा ही रहा होगा. भले ही जदयू 2017 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कोई सीट न जीत पाये, लेकिन उसकी उपस्थिति का असर जरूर होनेवाला है. दरअसल, जदयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने के बाद से नीतीश कुमार की राजनीति का रुख राष्ट्रीय हो गया है. वे केंद्र सरकार की नीतियों को आड़े हाथों ले रहे हैं. उन्हें पता है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उनके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है. शराबबंदी के नारे के साथ, जहां नीतीश कुमार की नजर महिला वोटों पर है, वहीं उत्तर प्रदेश में उनके आने से भी कुर्मी, ...

क्या संभव है जल के बिना जीवन की कल्पना?

May 7, 2015 फोटो साभार- अभिषेक कुमार चंचल मौजूदा समय में प्रकृति बात-बात  पर हमें डराती हुई मालूम पड़ती है। चाहे वह केदारनाथ की त्रासदी हो, बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि हो, नेपाल में आया भयंकर भूकंप हो या फिर उत्तर पूर्व बिहार में आए भयंकर तूफान हो, आपदा की ये सारी निशानियाँ चीख-चीख कर कहती है कि जीवन सही मायनों में दिन-प्रतिदिन और कठिन होती जा रही है। भौतिकतावादी होने के दौरान प्रकृति के साथ हुए दोहन ने “जलवायु परिवर्तन” रूपी विकट समस्या को हमारे सामने ला खड़ा किया है। कभी-कभी बस मन में एक ही सवाल उठता है कि क्या जल के बिना जीवन की कल्पना की जा सकती है? एक तरफ भारत सरकार की गंगा-सफाई योजना ने नदियों के प्रदूषण की तरफ तो देश का ध्यान आकृष्ठ किया है लेकिन देश में पानी का प्रदूषण सिर्फ नदियों तक ही सीमित नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक भारत में लगभग 9.7 करोड़ लोगों को ही पीने का साफ पानी मिल पाता है। हालांकि संयुक्त राष्ट्र की उस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दुनिया की जरूरतें पूरी करने के लिए पानी का स्त्रोत पर्याप्त है, लेकिन उसके सही प्रबंधन की जरूरत ह...

भारतीय लोकतंत्र में न्याय के मायने

विवेकानंद सिंह 11 मई को दक्षिण भारत  के दो अलग-अलग कोर्ट से दो फैसले आए, एक में तमीलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता को कर्नाटक हाई कोर्ट ने भ्रष्टाचार के मामले में मिली सजा से उनको बरी कर दिया। वहीं दूसरी ओर खातों में हेराफेरी कर करोड़ों रुपए के घोटाले में दोषी ठहराए गए बी. रामालिंगा राजू तथा 9 अन्य को अदालत ने जमानत दे दी। आज से चार दिन पहले 8 मई शुक्रवार को कुछ ऐसा ही फैसला मुंबई की अदालत से आया था जब बॉलिवुड अभिनेता सलमान खान को हिट एंड रन केस में 13 साल बाद सजा मिलने के दो दिन बाद बिना जेल गए ही जमानत मिल गई। यह तो भारत के न्याय का एक चेहरा मात्र है, इसके दूसरे चेहरे में वो गरीब, पीड़ित और बेबस इंसान शामिल हैं जो न्याय की चौखट पर भीख मांगते-मांगते फना तक हो जाते हैं। एक ऐसी ही दास्तां है दिल्ली विश्वविद्यालय के रामलाल आनंद कॉलेज में अंग्रेजी के लेक्चरर, डॉ. जी. एन. साईबाबा की जिन्हें 9 मई 2014 को महाराष्ट्र पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था। 90 प्रतिशत तक निःशक्त व्हील चेयर पर चलने वाले इस प्रोफेसर को पुलिस की डायरी में आतंकी बताया गया है। क्या कानून और...

यह सरकार क्यों नहीं सुनना चाहती मालेगांव बम धमाकों की आवाज?

विवेकानंद सिंह एक तरफ तो केंद्र की भाजपा  सरकार आपातकाल के दिनों को याद करते हुए आँसू बहा रही है। वहीं दूसरी तरफ मालेगाँव बम ब्लास्ट मामले में विशेष सरकारी वकील रोहिणी सालियान ने अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस को दिए साक्षात्कार में एक सनसनीखेज खुलासा किया है कि पिछले एक साल से, “जब से एनडीए सरकार सत्ता में आई है” उनके ऊपर काफी दबाव बनाया जा रहा हैं। उनपर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने दबाव बनाया कि वे इस मामले में नरम रवैया अपनाएं। अब आप ही बताइये क्या यह एक तरह का अघोषित आपातकाल नहीं है? अगर सच में सरकार का रवैया ऐसा है तो उस पर आप क्या कहेंगे?  इन कृत्यों से सरकार का न सिर्फ चाल, चरित्र और चेहरा सामने आता है, बल्कि यह आपातकाल पर बड़ी-बड़ी बातें करने का भी ढोंग सामने आता है। क्या कोर्ट में जिस मामले की सुनवाई हो रही उसे प्रभावित करने की कोशिश सरकारी मशीनरी की मनमानी करना नहीं है? हालांकि एनआईए ने इन आरोपों से इंकार किया है, लेकिन क्या इंकार कर देने भर को सच मान लिया जाय या फिर उस वकील को जिसने यह खुलासा किया है। इस मामले में सरकार की चुप्पी के क्या मायने हो सकते...

व्हिसलब्लोअर संरक्षण संशोधन विधेयक और सरकार की मंशा

विवेकानंद सिंह लोकसभा में 13 मई बुधवार को मोदी सरकार द्वारा  व्हिसलब्लोअर संरक्षण (संशोधन) विधेयक  लाया गया, जो कि सदन में पारित भी हो गया। इसमें सरकार ने व्हिसलब्लोअर संरक्षण कानून, 2011 के तहत दी जाने वाली सूचनाओं के दायरे को कम करने का प्रस्ताव रखा है। इस प्रस्ताव के मुताबिक अब इस कानून के तहत भ्रष्टाचार उजागर करने वाले लोग कम ही तरह की सूचनाओं को डिसक्लोज कर पाएंगे। सरकार ने इस संशोधन विधेयक को पारित करा कर मूलतः व्हिसलब्लोअर संरक्षण कानून की ताकत को कम करने का काम किया है। यह संशोधन विधेयक सरकार की भ्रष्टाचार को लेकर संवेदनशीलता पर सवाल खड़े करती है। वहीं सरकार का मानना है कि इस संशोधन विधेयक को लाने के पीछे उनका मकसद उन खुलासों के प्रति सुरक्षा के लिहाज से लाया गया, जिनसे देश की संप्रभुता और अखंडता को खतरा हो सकता है। लेकिन प्रश्न यहाँ आकर अटकता है कि इस देश में आखिर वो ऐसा कौन सा भ्रष्टाचार है जिसके उजागर होने से देश की संप्रभुता और अखंडता पर खतरा मंडराने लगेगा? हालांकि इस पर कार्मिक मंत्री जितेंद्र सिंह का कहना है कि भ्रष्टाचार का खुलासा करने वाले लोग...

बिहार चुनाव को लेकर क्या है जनता परिवार की राजनीति?

विवेकानंद सिंह जनता परिवार को लेकर सबके दिमाग  में अभी बस एक ही बात आ रही होगी कि इतना हो-हल्ला और कई मीटिंग्स के दौर के बाद जब सबने एक होने का फैसला कर ही लिया तो बिहार विधानसभा चुनाव से पहले यह विलय क्यों नहीं? जब मोदी की लहर के कारण धुर विरोधी हो चुके दो भाई गले मिलने को तैयार हो ही गए तो अब आखिर क्या समस्या हो गई? क्या लालू-नीतीश के रिश्तों में फिर से दरार आ गई? क्या पप्पू और मांझी का इसमें कोई फैक्टर तो नहीं है? लेकिन सवालों से इतर हकीकत यही है कि मौजूदा राजनीतिक माहौल में राजद-जदयू के विलय से बेहतर विकल्प उनके लिए गठबंधन ही है। राजद के एक नेता से मेरी बात हुई तो उनका कहना था कि उनके लिए सीटों की संख्या से बड़ा मसला 16 वीं बिहार विधान सभा चुनाव में बीजेपी को सत्ता तक पहुँचने से रोकना है। बीजेपी के नेता ने कहा कि इनकी आपसी लड़ाई के बीच हम 175 का आंकड़ा छूने में कामयाब होकर रहेंगे। खैर हार-जीत का पता तो चुनाव के बाद ही चलेगा लेकिन जनता परिवार में बिहार विधानसभा चुनाव से पहले इस हलचल पर मशहूर नारा याद आ रहा है “अभी तो ये अंगड़ाई है आगे और लड़ाई है”। देखना दिलचस्प होगा क...

पर्यावरण तुमसे हमारा ये रिश्ता क्या कहलाता है?

पर्यावरण और हमारा रिश्ता  अटूट होता है। अगर पर्यावरण को क्षति होगी तो हमें भी क्षति होगी। कई लोगों को लगता है कि आखिर ये पर्यावरण चीज क्या है? तो एक बात जानना बहुत आवश्यक है कि हमारा असली घर, हमारा पर्यावरण ही है, और अभी जिस घर में हम रह रहे हैं वह इस पर्यावरण रूपी घर के अंदर का घर है। अपने घर की हमें कितनी चिंता रहती है, दीवार में गलती से एक खरोंच भी आ जाए है तो लगता है कि दिल के सारे अरमां आँसुओं में बह ही जाएंगे। फिर ऐसे ही अरमां पर्यावरण के लिए क्यों नहीं? हलांकि पर्यावरण को बिगड़ने से बचाने की जिद में यूएनइपी 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाती हैं। जल-थल और वायु की मौजूदगी वाले हमारे पर्यावरण में प्रदूषण नामक प्राणी ने अपना अधिपत्य कायम करना शुरू कर दिया है। प्रदूषण हमारे ही अस्तित्व के लिए खतरा है। सबसे कमाल की बात तो यह है कि दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित 20 शहरों में से 13 शहर भारत से हैं। यहाँ हमने अमेरिका, चीन और यूरोप के विकसित देशों को भी पछाड़ दिया है। सोचिए एक तरफ देश की आधा से ज्यादा आबादी गरीबी की चपेट में है और जो बाकी बचे हैं वह प्रद...

आपातकाल : इंदिरा एंड इमरजेंसी इन इंडिया

विवेकानंद सिंह देश में आपातकाल लगने  के 40 साल पूरे होने जा रहे हैं। अगर मैं बात अपने पीढ़ी की करूँ तो हमने आपातकाल को देखा नहीं है। लेकिन अपने बड़े-बूढ़ों में से जिसने भी उस दौर की बातें बताई वह एक भयावह दास्तां थी। कल ही गुड़गांव में रायबरेली के रहने वाले एक वृद्ध मिले। कांग्रेस के प्रति अपार श्रद्धा रखने के बावजूद इमरजेंसी का जिक्र आते ही वह बोले, “उ जो इ लोग नसबंदी कराये लगन था, बड़ा गलत कीन था”। हर आम-खास जिसने इमरजेंसी को देखा और जिया था, वह आपातकाल को गुलामी से भी बदतर ठहराने को तैयार हुआ। पिछले दिनों जब भाजपा के मार्गदर्शक और वरिष्ठतम नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने अंग्रेजी दैनिक इंडियन एक्सप्रेस को दिये अपने साक्षात्कार में कहा कि वो आज भी ये यकीन से नहीं कह सकते कि अब देश में इंमरजेंसी नहीं लग सकता है।यानी कि देश इमरजेंसी काल से 40 साल आगे बढ़ चुका है लेकिन देश के हालात आज भी कुछ ऐसे हैं जिससे हमारे बुजुर्गों को इमरजेंसी का खतरा नजर आता है। आपातकाल को भारतीय लोकतंत्र के काले अध्याय के रूप में हमेशा याद किया जाता रहा है और आगे भी किया जाता रहेगा। क्यों लगा था आपातकाल...